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राष्ट्रीय संदर्भ में तो आज गांधी की शिक्षाओं तथा प्रयोगों की जरूरत काफी बढ़ गई है। खेद की बात यह है कि जिस देश के महान् मनीषी ने विश्व को अनेक उच्च विचार दिए, विश्व मानवता को संकटों से मुक्ति का मार्ग बताया, उसी के महान् भारत में स्वाभिमान, राष्ट्रीयता, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, सहनशीलता आदि गुणों का ह्रास हो रहा है और देश के चारों तरफ समस्याओं के काले बादल छाने लगे हैं।
हमें आज की परिस्थितियों में यह देखकर निश्चित रूप से प्रसन्नता हुई है कि देश और विदेश सभी जगह लोगों ने कुछ हद तक गांधी के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया है और वह दिन अब अधिक दूर नहीं जब दुनिया का हर व्यक्ति गांधीवादी पद्धति का अवलंबन शुरू कर दे। ऐसा होगा, तभी मानवता को जीवित रखा जा सकता है। अमेरिका, इंग्लैंड, पश्चिम जर्मनी, जापान और अन्य दूसरे विकसित देशों के लोग आज गांधी द्वारा बताए गए अहिंसात्मक प्रतिरोध के द्वारा अपनी- अपनी सरकारों पर दवाब डाल रहे हैं कि वे मानवता का संहार करनेवाले हथियारों पर प्रतिबंध संबंधी बातचीत में तेजी लाएँ।
महात्मा गांधी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कार्यों में अंतर करने को तैयार नहीं थे। वे मानते थे कि मनुष्य के सभी कार्य एवं समस्याएँ मूल रूप में नैतिक हैं, अत: उनका समाधान भी नैतिक उपायों से ही संभव है।
गांधी के सपनों का भारत में विद्वान् लेखक ने गांधीजी के सिद्धांतों और जीवन-मूल्यों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि हम सब अगर गांधीजी के बताए रास्ते पर चलें तो एक सशक्त, लोककल्याणकारी और गांधीजी के सपनों के भारत का निर्माण कर सकते हैं। आओ, हम सब भारतवासी इस पुनीत कार्य में भागीदार बनें ।
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विषय-सूची
आभार-ज्ञापन — Pgs. 7
भूमिका — Pgs. 11
1. महात्मा गांधी का संक्षिप्त जीवन वृति — Pgs. 21
2. राजनीति का नैतिककरण : सत्य एवं अहिंसा — Pgs. 34
3. सत्याग्रह : सिद्धांत एवं व्यवहार — Pgs. 47
4. राज्य एवं लोकतंत्र — Pgs. 72
5. सामाजिक विचार — Pgs. 98
6. आर्थिक विचार एवं सर्वोदय — Pgs. 120
7. महात्मा गांधी के विचारों की आज के परिपे्रक्ष्य में प्रासंगिकता — Pgs. 149
संदर्भ ग्रंथ — Pgs. 185
जन्म : बिहार प्रांत के बड़हिया, लखीसराय में।
कृतित्व : ‘रेत कमल’ तथा ‘आत्मा की यात्रा एवं संस्कार’ दो उपन्यास प्रकाशित एवं प्रशंसित।
इसके अलावा पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, निबंध, समीक्षा आदि प्रकाशित। आकाशवाणी से आलेख पाठ प्रसारित।
संप्रति : विश्वविद्यालय के प्राचार्य एवं हिंदी विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त होकर साहित्य सृजन में रत।