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इस पुस्तक से पहले लेखक की कहानियों के दो संग्रह छप चुके हैं। हमें खुशी है कि पाठकों को उनकी कहानियाँ पसंद आईं। ‘श्रेष्ठ सैनिक कहानियाँ’ हिंदी साहित्य में एकमात्र ऐसी पुस्तक है, जिसमें सारी कहानियाँ सैनिकों की वीरता और उनकी उपलब्धियों पर लिखी गई हैं। स्वतंत्रता के बाद अपने देश ने पाकिस्तान और चीन के विरुद्ध चार लड़ाइयाँ लड़ी हैं। इस पुस्तक में उन सबका उल्लेख है। कहानियाँ सेना के तीनों अंगों—थलसेना, वायुसेना और नौसेना—के ऊपर हैं। ‘अनुपम कहानियाँ’ असैनिक विषयों पर हैं और देश में घटी विभिन्न घटनाओं पर प्रकाश डालती हैं।
इस संग्रह की सारी कहानियाँ आधुनिक हैं। इनकी विविधता इन्हें रोचक बनाती है। इनमें से तीन कहानियाँ वास्तविक चरित्रों पर हैं, शेष काल्पनिक हैं। पिछले वर्षों में महिलाओं ने बहुत प्रगति की है; वे हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं और उच्चतम पदों पर सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। इस संग्रह में आधी कहानियाँ उन्हीं के ऊपर लिखी गई हैं।
लेखन-शैली विषय के अनुसार है। कहानियों में गति है, वह कहीं रुकती नहीं। कहानियाँ पाठक को अंत तक पढ़ने के लिए विवश कर देती हैं और सतत उत्सुकता बनाए रखती हैं। इनके विषय रोमांचक हैं और आज के हालात से जुड़े हैं। इन कहानियों में किसी प्रकार की अश्लीलता नहीं है और इसे सभी—वृद्ध, युवा और बच्चे—पढ़ सकते हैं। नारी समाज के लिए यह संग्रह विशेष महत्त्व रखता है।
लेफ्टि. जनरल यशवंत मांडे का जन्म फैजाबाद, उत्तर प्रदेश में 18 नवंबर, 1933 को हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा वाराणसी व गोरखपुर में हुई। 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रवेश लिया।
बचपन से ही उनकी रुचि हिंदी साहित्य में थी। कमीशन के बाद उन्होंने बी.ए. और एम.ए. की पढ़ाई अंग्रेजी में की; लेकिन उनका लगाव हिंदी से पहले जैसा बना रहा। वे हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कहानियाँ लिखते हैं।
भारतीय सेना में अपनी योग्यता और कार्य-कुशलता के लिए उन्होंने ख्याति व उच्च पद प्राप्त किया। सन् 1962, 65 एवं 71 के युद्धों में भाग लिया और देश की सभी सीमाओं पर दायित्व निभाया है।
उनके जीवन में सैन्य सेवा और साहित्य दोनों ही साथ-साथ चलते रहे। सेना से निवृत्त होने के बाद उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। उनकी दो पुस्तकें ‘श्रेष्ठ सैनिक कहानियाँ’ और ‘अनुपम कहानियाँ’ प्रकाशित हो चुकी हैं।