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Gaon Ka Yogi   

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Author Mani Shankar Mukherjee
Features
  • ISBN : 9789350485965
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Mani Shankar Mukherjee
  • 9789350485965
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 232
  • Hard Cover

Description

उन्नीसवीं सदी के श्रीरामकृष्ण-शिष्य स्वामी विवेकानंद से लेकर बंगाल के असंख्य महायोगी स्वदेश की सीमा पार करके सुदूर अमेरिका में शाश्वत भारत की आध्यात्मिक वाणी का प्रचार करते हुए विश्व जन का विश्वास, स्वीकृति और प्रेम अर्जित करते रहे हैं। इस अविश्वसनीय शृंखला के अंतिम (वर्तमान) छोर पर खड़े हैं—विस्मय-सार्थक श्रीचिन्मय।
चटगाँव की उजाड़ गाँव-बस्ती शाकपूरा में जन्म ग्रहण करके चिन्मय कुमार घोष नितांत बचपन में श्रीअरविंद के पांडिचेरी आश्रम में उपस्थित हुए और दो दशक बाद किसी समय मन के आकस्मिक निर्देश पर पैसा-कौड़ीहीन, नितांत फकीर हालत में, सात समंदर पार सुदूर अमेरिका जा पहुँचे। वहीं विस्मयकारी साधना और उसकी अतुलनीय स्वीकृति धीरे-धीरे दुनिया में सब दिशाओं में फैल चुकी है।
न्यूयॉर्क में श्रीचिन्मय के नाम पर राजपथ, जंजीबार में डाक टिकट, राष्ट्र संघ में स्थायी प्रार्थना कक्ष, नॉर्वे-ओस्लो में आदमकद ताम्रमूर्ति उनकी असाधारण साधना की स्वीकृति के रूप में विद्यमान हैं। भक्तिभावमय प्रिंसेस डायना उनकी अनुरागिनी थीं, मिखाइल गोर्वाचेव उनके निकटतम बंधु! नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी कई बार उनका नाम प्रस्तावित किया गया। लेकिन हैरत की बात यह है कि सागर पार के इस अभूतपूर्व सम्मान की खबर आज भी साधक की जन्मभूमि इस भारत में खास चर्चित नहीं हुई। भारतवर्ष और बँगलादेश में हम आज भी उन्हें ज्यादा नहीं पहचानते।
उस अप्रतिम साधक, मानवसेवी, विद्वत्ता की प्रतिमूर्ति श्रीचिन्मय की प्रेरणाप्रद औपन्याससिक गाथा है यह पुस्तक।

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अनुक्रम

कृतज्ञता ज्ञापन — Pgs. 7

1. श्रीचिन्मय — Pgs. 11

2. गाँव का योगी सागर पार — Pgs. 37

3. बंगाली साधक की विश्व-विजय — Pgs. 77

4. शाकपूरा का घोष परिवार — Pgs. 97

5. श्रीअरविंद की तलाश में — Pgs. 112

6. अमेरिका में — Pgs. 116

7. हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भाषण — Pgs. 123

8. सागर पार की स्वीकृति — Pgs. 128

9. आमिष-निरामिष — Pgs. 131

10. डिवाइन इंटरप्राइजेज के उत्स संधान में — Pgs. 135

11. बंगाली गुरु के स्विस भक्त — Pgs. 140

12. सागर पार की भक्ति — Pgs. 145

13. अजब देश का अजब नाई — Pgs. 150

14. विश्व पथिक श्रीचिन्मय — Pgs. 166

15. कठिन प्रश्नों का सहज चिन्मय भाष्य — Pgs. 172

16. आखिरी बात — Pgs. 201

The Author

Mani Shankar Mukherjee

शंकर (मणि शंकर मुखर्जी) बँगला के सबसे ज्यादा पढ़े जानेवाले उपन्यासकारों में से हैं। ‘चौरंगी’ उनकी अब तक की सबसे सफल पुस्तक है, जिसका हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है; साथ ही सन् 1968 में उस पर बँगला में फिल्म भी बन चुकी है। ‘सीमाबद्ध’ और ‘जन अरण्य’ उनके ऐसे उपन्यास हैं, जिन पर सुप्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजित रे ने फिल्में बनाईं। हिंदी में प्रकाशित उनकी कृति ‘विवेकानंद की आत्मकथा’ बहुप्रशंसित रही है।
संप्रति : कोलकाता में निवास। अनुवादकसुशील गुप्‍ता अब तक लगभग 130 बांग्ला रचनाओं का हिंदी में अनुवाद कर चुकी हैं। उनके कई कविता-संग्रह प्रकाशित हैं। उन्होंने प्रोफेसर भारती राय की आत्मकथा ‘ये दिन, वे दिन’ का भी मूल बांग्ला से अनुवाद किया।

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