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वर्ष 2013-17 के बीच बिहार ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन को टूटते-बनते देखा। इन दो बड़े राजनीतिक विखंडनों का शासन, समाज और अर्थव्यवस्था पर कितना गहरा दुष्प्रभाव पड़ा, यह तो शोध का विषय है, लेकिन इतना तय है कि गठबंधन राजनीति के कई-कई पाटों के बीच कोई अमृत कोश अक्षुण्ण रहा, जिससे बिहारी समाज की सात्त्विक चेतना साबुत बची रही। उसकी संजीवनी से कला, विज्ञान और सामाजिक बदलाव जैसे कई क्षेत्रों में उपलब्धियों के फूल भी खिलते रहे। नीतीश कुमार के भाजपा से फिर हाथ मलाने के बाद बिहार के लिए केंद्र से टकराव का दौर समाप्त हुआ। जुलाई 2017 में 27 साल बाद पटना और दिल्ली में एक ही गठबंधन की सरकार बनी। इस संयोग को हमारे पिछड़े राज्य के विकास की गति बढ़ानेवाले बदलाव के रूप में देखा गया। पटना को मेट्रो रेल मलने का रास्ता साफ हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों विकास की राजनीति के आइकन बन चुके हैं। बिहार इस समय डबल इंजनवाली राजग सरकार पर सवार है। पुस्तक का शीर्षक इस तथ्य का रूपक है। पुस्तक में हर आलेख से पहले आचार्य चाणक्य के नीति श्लोक उद्घृत किए गए हैं, ताकि पाठक स्वयं परख सकें कि आज की राजनीति कितनी नीतिपरक रह गई है।
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अनुक्रम
अभिमत : राजनीतिक चित्रपट पर घटनाओं के बिंब —Pgs. 7
लेखकीय : बीती हुई गलियों से फिर गुजरना.. —Pgs.. 9
1. एक असंभव के खिलाफ —Pgs. 17
2. सीढ़ियाँ चढ़ते सुशील मोदी —Pgs. 24
3. सिर्फ पोस्टर पर गोली दागो... —Pgs.33
4. न फर्जी डिग्री में शर्म, न नकल में —Pgs. 37
5. सुशासन पर सवाल —Pgs. 43
6. महिमा घटी समुद्र की —Pgs. 48
7. पैकेज पर पाॅलिटिक्स —Pgs. 54
8. बिहार को चाहिए नया चाँद —Pgs. 60
9. महानायक बने नीतीश —Pgs. 65
10. पी.एम. मैटीरियल —Pgs. 74
11. मलिन होता राजमुकुट —Pgs. 84
12. सप्त क्रांति बनाम सात निश्चय —Pgs. 90
13. नीतीश रतन धन पायो —Pgs. 97
14. लौट आए डरावने दिन —Pgs. 103
15. सफेद कुरते पर स्याही —Pgs. 109
16. न दामन पे कोई छींट... —Pgs.116
17. बिहारी, फूल बरसाओ... —Pgs.123
18. हादसे तो होते रहेंगे —Pgs. 129
19. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जय —Pgs. 134
20. सामूहिक शर्म का मौसम —Pgs. 138
21. योगी प्रभाव की आहट —Pgs. 143
22. फिर लालू बनाम सुमो —Pgs. 149
23. कातिल ही लिखेगा फैसला —Pgs. 155
24. सियासत में बहार, हमारा बियाबाँ —Pgs. 160
25. फिर साथ होने का जोखिम —Pgs. 167
26. नीतीश की नमो-नमो —Pgs. 173
27. बाढ़, बालू और राजनीति —Pgs. 179
28. लालटेन युग का संधिकाल —Pgs. 185
29. उत्तरायण राजनीति से आस —Pgs. 192
30. सबसे तेज विकास —Pgs. 198
31. उप-चुनाव और रामनवमी —Pgs. 203
32. विचार-युद्ध में हारे लालू और कांग्रेस —Pgs. 209
33. महोदय, पर्यावरण आडिट कराइए —Pgs. 212
34. दोस्त को कम आँकने का दौर —Pgs. 215
35. चाहिए ग्रेटा जैसी बेटियाँ —Pgs. 218
36. लोकतंत्र के गटर में डूबा पटना —Pgs. 221
कुमार दिनेश
हिंदी पत्रकारिता में 38वाँ वर्ष : ‘समकालीन तापमान’ में नियमित राजनीतिक विश्लेषण लेखन।
सम्मान : ‘महानायक शारदा सम्मान-2016’; ‘साहित्य साधना सम्मान-2013’; सदस्य हिंदी सलाहकार समिति (2015 से)।
‘सुरंग के पार बिहार’ (2005 से बिहार में राजनीतिक बदलाव के साथ तेज आर्थिक विकास की शुरुआत पर केंद्रित संपादकीय टिप्पणियों का संग्रह)
संपादित पुस्तकें : ‘आँखों भर आकाश’, (साइकिल-पोशाक योजना के फलस्वरूप शिक्षा के प्रसार से बिहार की छात्राओं में बढ़ते आत्मविश्वास की अनुभूतियों का संकलन, ‘बीच समर में’ (वरिष्ठ राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता श्री सुशील कुमार मोदी के लेखों का संग्रह)
संप्रति : प्रधान संपादक , स्वत्व (हिंदी मासिक), पटना।
संपर्क : श्यामा स्मृति, कचौड़ी गली, चौक, पटना सिटी- 800008, बिहार।
इ-मेल : dineshpatna60@gmail.com
मो. : 09835944917/ 07484848839