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दुनिया की हर भाषा में यह उक्ति बहुत लोकप्रिय है—‘पहला सुख निरोगी काया’। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है—A Sound Mind exists in a Sound Body. इसलिए अच्छे स्वास्थ्य, निरोगी शरीर से बढ़कर संसार में कोई सुख नहीं।
जहाँ समस्याएँ होती हैं वहाँ उनका समाधान भी अवश्य होता है। ऐसे ही बीमारियाँ हैं तो उनका इलाज भी है। इसके लिए अनेक चिकित्सा-पद्धतियाँ उपयोग में लाई जा रही हैं। यह सच है कि आज संसार भर के लोग एलोपैथी के दुष्प्रभावों से आतंकित हैं, फलतः अधिकाधिक लोग आयुर्वेद एवं देसी चिकित्सा की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
\'घर का डॉक्टर\' में सामान्य बीमारियों के देसी इलाज/उपचार दिए गए हैं। ये देसी दवाइयाँ हमारे घर/रसोई में मौजूद हैं। इनके लिए बाजार या मेडिकल स्टोर की ओर दौड़ना नहीं पड़ता। ये नुस्खे सहज सुलभ हैं। इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य भी यही है कि हमारे घर में जो चीजें उपलब्ध हैं, उन्हीं से इन बीमारियों का तुरंत इलाज कर लिया जाए। इससे हमारी परंपरागत देसी-घरेलू चिकित्सा भी पुनर्जीवित होगी।
आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि पाठकगण इससे लाभ उठाकर स्वयं अपने घर-परिवार को रोग-मुक्त बनाएँगे।
प्रेमपाल शर्मा
जन्म : 5 जुलाई, 1963 को बुलंदशहर (उ.प्र.) के मीरपुर-जरारा गाँव में।
कृतित्व : विश्वप्रसिद्ध वनस्पतिविद् एवं वन्यजीव-विज्ञानी डॉ. रामेश बेदी के सान्निध्य में अनेक वर्षों तक शोध सहायक के रूप में कार्य एवं 'बेदी वनस्पति कोश' (छह खंड) का सफल संपादन। 'सवेरा न्यूज' साप्ताहिक में स्वास्थ्य कॉलम एवं संपादकीय लेखन के साथ-साथ आकाशवाणी (मथुरा व नई दिल्ली) से वार्त्ता आदि प्रसारित; 'टू मीडिया' मासिक द्वारा मेरे व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक प्रकाशित ।
रचना-संसार : 'निबंध, पत्र एवं कहानी लेखन', 'सुबोध हिंदी व्याकरण', 'जीवनोपयोगी जड़ी-बूटियाँ', 'स्वास्थ्य के रखवाले, शाक-सब्जी-मसाले', 'सचित्र जीवनोपयोगी पेड़-पौधे', 'संक्षिप्त रामायण', 'स्वस्थ कैसे रहें?', 'स्वदेशी चिकित्सा सार', 'घर का डॉक्टर', 'शुद्ध अन्न, स्वस्थ तन', 'नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे' (यात्रा-संस्मरण); 'हिंदी काव्य धारा' (संपादन ।
पुरस्कार-सम्मान : श्रीनाथद्वारा की अग्रणी संस्था साहित्य मंडल द्वारा 'संपादक- रत्न' एवं 'हिंदी साहित्य-मनीषी' की मानद उपाधि।
संप्रति : आयुर्वेद पर शोध एवं स्वतंत्र लेखन ।