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पुस्तक में श्रीमद्भगवद्गीता के समस्त श्लोकों का हिंदी-छंदों में रूपांतरण किया गया है। हर श्लोक के लिए एक अलग छंद की रचना की गई है। छंद की सीमित परिधि के अंदर ही मूल श्लोक का संपूर्ण अर्थ समाहित करने का प्रयास किया गया है। छंदों का अर्थ मूल श्लोकों से तनिक भी भिन्न न हो, इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है। इस काव्य का पठन मूल ग्रंथ को पढ़ने के समान है। छंदों में गेयता है और इसका नियमित पठन मन को आनंदित करता है। इस पुस्तक के माध्यम से गीता के ज्ञान को सरलता से आत्मसात् किया जा सकता है।
सुनील बाजपेयी का जन्म 22 फरवरी, 1968 को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी जिले के ग्राम कल्लुआ मोती में अपने ननिहाल में हुआ। बचपन के प्रारंभिक वर्ष अपने नाना स्व. श्री देवीसहाय मिश्र के सान्निध्य में बिताए। नानाजी से रामचरितमानस, श्रीमद्भागवत आदि आध्यात्मिक ग्रंथों को पढ़ने की प्रेरणा मिली। बचपन से ही आध्यात्मिक साहित्य और सत्संग आदि में रुचि रही। उसके बाद की स्कूली शिक्षा लखनऊ में हुई। वर्ष 1988 में आई.आई.टी. कानपुर से बी.टेक. और 1990 में आई.आई.टी. दिल्ली से एम.टेक. की डिग्रियाँ अर्जित कीं। कुछ समय भारतीय रेलवे में नौकरी करने के बाद 1991 में भारतीय राजस्व सेवा (आई.आर.एस.) ज्वॉइन की। संप्रति आयकर विभाग में आयकर आयुक्त के पद पर कार्यरत हैं। साहित्य पढ़ने में रुचि आरंभ से ही रही। बाद में साहित्य सृजन के प्रति भी रुझान पैदा हुआ। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से भगवान् श्रीकृष्ण के अमर संदेश को सरल भाषा द्वारा पद्य रूप में प्रस्तुत किया है।