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भारतीय वाङ्मय के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता में जिन सिद्धांतों एवं व्यवस्थाओं का उल्लेख किया गया है, वे प्रत्येक दृष्टिकोण से एक विशिष्ट प्रबंधकीय प्रणाली के अनुरूप हैं। अब समय आ गया है कि हम प्रबंधकीय शिक्षा के ढाँचे में आधारभूत परिवर्तन करें और किसी अन्य प्रबंधकीय व्यवस्था के बारे में सोचें, जो मानव जाति एवं व्यावसायिक जगत् के लिए अधिक लाभकारी हो। इस संदर्भ में भगवद्गीता हमें एक रास्ता दिखा सकती है। गीता मुख्य रूप से मनुष्य के व्यक्तिगत विकास, उसके चरित्र-निर्माण और समाज एवं विश्व के साथ उसके संबंधों की विस्तार से समीक्षा करते हुए उसका सही मार्ग प्रशस्त करती है। आवश्यकता इस बात की है कि हम पिछले साठ-सत्तर वर्षों से प्रदत्त की जानेवाली शिक्षा के बारे में पुनर्विचार करें। गीता इस संबंध में एक विकल्प है, जिसके बताए हुए रास्ते पर चलकर वर्तमान प्रबंधकीय प्रणाली में मौलिक परिवर्तन किए जाने की संभावना है।
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी
श्री विनोद मल्होत्रा ने गीता के ज्ञानसागर में से मैनेजमेंट के कुछ रत्न खोज निकाले हैं। विश्वास है, ये सूत्र न केवल व्यावसायिक जगत् अपितु सामान्यजन के लिए भी समान रूप से उपयोगी होंगे और जीवन जीने का मार्ग आसान बनाएँगे।
20 जुलाई, 1949 को जनमे विनोद मल्होत्रा ने शिमला, चंड़ीगढ़ और दिल्ली में शिक्षा प्राप्त की तथा वर्ष 1971 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदार्पण किया। संस्कृत भाषा में आपकी गहन रुचि है। बचपन से ही भगवद्गीता एवं संगीत में आपका रुझान रहा है। गीता का गहराई से अध्ययन करते हुए आपने हमेशा इसके ज्ञान को बाँटने, संचित करने व इसके संदेश को फैलाने का प्रयास किया। कुछ ही लोगों ने संगीत की शक्ल में गीता के श्लोकों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। आपने इस चुनौती को स्वीकार किया और सुर एवं ताल के साथ गीता के अद्वितीय संदेश को प्रस्तुत करने की ठानी और दस विभिन्न रागों में इसका संगीत तैयार किया।
विज्ञान एवं अध्यात्म का अनुपम संगम करते हुए श्री मल्होत्रा ने ‘वैश्विक ऊर्जा’, ‘जीवन शैली का प्रबंधन’, ‘मृत्यु—एक शाश्वत सत्य’ विषयों पर पुस्तकें एवं लेख भी लिखे हैं। आपकी सभी कृतियाँ भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक संपदा को सजीव करती हैं।