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ऊँचे पर्वतों पर अथवा ध्रुवीय प्रदेशों में मानव आबादियों से दूर, निर्जन प्रदेशों में वास करनेवाले ग्लेशियर बर्फ के निर्जीव पिंड नहीं हैं, वे ‘जीवित प्राकृतिक संरचनाएँ’ हैं। वे पृथ्वी पर पेयजल के सबसे बड़े भंडार हैं और अनेक विशाल नदियों के स्रोत हैं। वे हमें उस समय पानी देते हैं जब हमें उसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
वर्तमान में पृथ्वी का लगभग दस प्रतिशत भाग ग्लेशियर-आच्छादित है, परंतु विभिन्न भूवैज्ञानिक कालों में उनका साम्राज्य घटता-बढ़ता रहा है। एक समय, जब भारत गोंडवानालैंड का भाग था, तब उसके अनेक मैदानी भागों पर उनका आधिपत्य था। आज भी ध्रुवीय-प्रदेशों और ग्रीनलैंड के बाद सबसे अधिक ग्लेशियर हिमालय पर्वत पर हैं। यद्यपि भूवैज्ञानिक कालों के दौरान विभिन्न प्राकृतिक कारणों से ग्लेशियर सिकुड़ते रहे हैं, परंतु वर्तमान में मानवजन्य कुकृत्यों के फलस्वरूप उनके सिकुड़ने की गति तेज हो गई है। अब उनकी सुरक्षा बहुत जरूरी हो गई है।
प्रस्तुत पुस्तक में ग्लेशियरों के निर्माण, उनकी गतिविधियों के साथ-साथ हिमालय के ग्लेशियरों के अभिलक्षणों, उनके ह्रास के कारण और सुरक्षा के उपायों का वर्णन है। सरल-सुबोध भाषा शैली में लिखी तथा चित्रों से भरपूर यह पुस्तक विशेषज्ञों के साथ-साथ जनसाधारण को भी अवश्य रुचिकर लगेगी।
जन्म : 8 दिसंबर, 1929 ।
आरंभिक शिक्षा जबलपुर ( मध्य प्रदेश) में । कुछ वर्षों तक रसायनशास्त्र में शोध करने के पश्चात् हिंदी में विज्ञान लेखन । 1958 से ' विज्ञान प्रगति ' ( कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च की हिंदी विज्ञान - मासिक) से संबद्ध; 1964 से पत्रिका का संपादन । दिसंबर 1989 में संपादक पद से अवकाश ग्रहण ।
हिंदी में विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों पर प्रकाशित पुस्तकों और पत्रिकाओं के विवरणों का आकलन और तृतीय विश्य हिंदी सम्मेलन के अवसर पर ' हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रकाशन निदेशिका ' का प्रकाशन ।
विविध वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में सैकड़ों लेख प्रकाशित और रेडियो वार्त्ताएँ प्रसारित । कुछ पुरस्कृत पुस्तकें है - अनंत आकाश : अथाह सागर (यूनेस्को पुरस्कार, 1969), सूक्ष्म इलेक्ट्रानिकी (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, 1987), प्रदूषण : कारण और निवारण (पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार, 1987), आओ चिड़ियाघर की सैर करें (हिंदी अकादमी, दिल्ली, 1985 - 86), विज्ञान परिषद् इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट संपादन हेतु सम्मानित ।