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साहित्य मनीषी गोविन्द मिश्र के कथा-लेखन में नारी-विमर्श का पुख्ता इतिहास रहा है, जिसकी याद बनाए रखना जरूरी है। स्त्री-पुरुष संबंध, विवाह जैसी सामाजिक संस्थाएँ और स्त्री-व्यक्तित्व के विकास से जुड़ी तमाम समस्याएँ उनकी चिंता के केंद्र में हमेशा से रही हैं।
लगभग 50 वर्षों में फैली उनकी साहित्य-यात्रा अत्यंत समृद्ध एवं वैविध्यपूर्ण है। वे अपनी प्रत्येक रचना में एक नई भावभूमि, नया परिवेश और एक नई कथा को प्रस्तुत करते हैं। उनके कथा-लोक में पाठक भारत के गाँव-कस्बे, नगर-महानगरों की ही नहीं वरन् विदेशी धरती तक की यात्रा कर आते हैं। उनकी रचनाओं में जीवन-संघर्ष की द्वंद्वात्मकता के साथ मनुष्य-मन को आलोकित करती प्रेमानुभूति की अत्यंत सशक्त अभिव्यक्ति हुई है।
गोविन्द मिश्र अपनी कहानियों की लोकप्रियता के फेर में कभी नहीं पड़े। पूरी शिद्दत और पैनेपन के साथ लिखी उनकी ये लोकप्रिय कहानियाँ पाठकों को अवश्य पसंद आएँगफे
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अनुक्रम
भूमिका — Pgs. 5
1. खंडित — Pgs. 9
2. फाँस — Pgs. 18
3. आल्ह-खंड — Pgs. 24
4. पेंचदारी — Pgs. 34
5. काम — Pgs. 47
6. नए सिरे से — Pgs. 54
7. अक्षम — Pgs. 63
8. पगडंडी — Pgs. 72
9. मुझे बाहर निकालो — Pgs. 82
10. ज्वालामुखी — Pgs. 92
11. शापग्रस्त — Pgs. 100
12. संध्यानाद — Pgs. 110
13. यत्र धर्मः — Pgs. 118
14. खुद के खिलाफ — Pgs. 128
15. धाँसू — Pgs. 139
16. वरणांजलि — Pgs. 160
17. पगलाबाबा — Pgs. 168
18. मायकल लोबो — Pgs. 174
जन्म : 1939 अतर्रा (बांदा) उ.प्र.।
शिक्षा : अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.।
रचना-संसार : ‘वह—अपना चेहरा’, ‘उतरती हुई धूप’, ‘लाल-पीली जमीन’, ‘हुजूर दरबार’, ‘तुम्हारी रोशनी में’, ‘धीर-समीरे’, ‘पाँच आँगनों वाला घर’, ‘फूल...इमारतें और बंदर’, ‘कोहरे में कैद रंग’, ‘धूल पौधों पर’, ‘अरण्य-तंत्र’ (उपन्यास); ‘नए पुराने माँ-बाप’, ‘अंतःपुर’, ‘धाँसू’, ‘रगड़ खाती आत्महत्याएँ’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘अपाहिज’, ‘खुद के खिलाफ’, ‘खाक इतिहास’, ‘पगला बाबा’, ‘आसमान कितना नीला’, ‘हवाबाज’, ‘मुझे बाहर निकालो’, ‘नए सिरे से’ (कहानी-संग्रह); ‘धुंध भरी सुर्खी’, ‘दरख्तों के पार...शाम’, ‘झूलती लड़ें’, ‘परतों के बीच’, ‘और यात्राएँ’ (यात्रा-वृत्तांत); ‘साहित्य का संदर्भ’, ‘कथा भूमि’, ‘संवाद अनायास’, ‘समय और सर्जना’, ‘साहित्य, साहित्यकार और प्रेम’, ‘सान्निध्य साहित्यकार’ (संस्मरण); ‘साहित्यकार होना’, ‘कवि के घर में चोर’, ‘मास्टर मन्सुखराम’, ‘आदमी का जानवर’ (साहित्यिक निबंध), ‘ओ प्रकृति माँ’ (कविता) एवं ग्यारह विविध विषयों की पुस्तकें, एक जीवनी तथा कई कृतियों के भारतीय भाषाओं में अनुवाद।
सम्मान-पुरस्कार : प्रेमचंद पुरस्कार, व्यास सम्मान, सुब्रमण्यम भारती पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, भारत-भारती सम्मान, सरस्वती सम्मान से अलंकृत।