₹250
इस पुस्तक में प्रारंभिक स्तर पर गुणात्मक शिक्षा से संबंधित कुछ आलेख, प्रयोग एवं रचनाएँ शिक्षकों को समर्पित हैं। इन आलेखों के बहाने गुणात्मक शिक्षा के मुद्दे को उठाना इसका प्रयोजन है। इस पुस्तक के बहाने पढ़ने का, बहस करने का, विचार करने का और अंततः कुछ करने का सिलसिला प्रारंभ होगा। चिंतन, मनन अवश्य हो, परंतु अंतिम परिणति है—सपने को, सिद्धांत को, विचार को कार्यरूप देना।
कल तक शिक्षा के केंद्र में शिक्षक थे, परंतु अब विद्यार्थी हैं। अब शिक्षक दंड या सख्ती का प्रयोग कर चीजों को आगे नहीं ले जा सकते। आज उम्र से ज्ञान का संबंध पहले जैसा नहीं है। तथ्यों एवं सूचना विस्फोट के कारण कोई अब दावा नहीं कर सकता कि सिर्फ उम्र के कारण या पहले जन्म लेने के कारण वह अधिक जानता है। अब बातों को लादना कठिन है, इसलिए काम विनम्रता से बनेगा। अब नया शिक्षक विद्यार्थी पर अपना ज्ञान थोप नहीं सकता। वह बड़े भाई या मित्र की भूमिका में अपने को तैयार करे, जो छात्र को प्रोत्साहित करेगा, समझाएगा, उसके साथ दूरी तय करेगा। शिक्षक बच्चों के साथ मिलकर साझा समझ विकसित करेगा, ज्ञान का सृजन करेगा।
बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु एक आवश्यक पुस्तक, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के सिद्धांतों, प्रयोगों एवं शिक्षण कौशल विकास के व्यावहारिक उपायों से हमें परिचित कराती है। यह पुस्तक प्रेरित करती है कि पढ़ने के स्थान पर सीखने को महत्त्व दिया जाए। यदि बच्चे नहीं सीख पाते और असफल होते हैं तो हमें अपने सिखाने के तौर-तरीके पर पुनर्विचार करना होगा।
_______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
संपादकीय — Pgs. 7
1. शिक्षा के बारे में महात्मा गांधी के विचार —आर.के. प्रभु एवं यू.आर. राव — Pgs. 13
2. शिक्षा — स्वामी विवेकानंद — Pgs. 21
3. मेरी पाठशाला में क्या नहीं चलेगा — गीजुभाई — Pgs. 27
4. हमें हमारा आदर्श दो — ए.पी.जे. अब्दुल कलाम — Pgs. 31
5. शिक्षक के नाम पत्र — अब्राहम लिंकन — Pgs. 41
6. हर बच्चा खास होता है — आमिर खान — Pgs. 45
7. शिक्षा के जरिए कायम होगी शांति — शकीरा — Pgs. 49
8. बच्चा — विनोदानंद झा — Pgs. 53
9. पढ़ो पूर्वी चंपारण : एक शैक्षिक प्रयोग — रुक्मिणी बनर्जी — Pgs. 59
10. कहानी सुनाने का हुनर — कृष्ण कुमार — Pgs. 71
11. प्राथमिक स्तर पर भाषा-शिक्षण — विनोदानंद झा — Pgs. 80
12. एक स्कूल का बयान — ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी — Pgs. 89
13. गणित कैसे पढ़ाएँ — विनोदानंद झा — Pgs. 98
14. मेरी कहानी — अरुण कमल — Pgs. 104
15. विद्यालयों में बाल पुस्तकालय — विनोदानंद झा — Pgs. 111
16. शिक्षक एक कदम आगे — महफूज अहमद खाँ — Pgs. 118
17. जो देखकर भी नहीं देखते — हेलन कीलर — Pgs. 123
18. बच्चे कैसे सीखते हैं? — Pgs. 125
19. विशेष आवश्यकतावाले बच्चों की देखभाल — Pgs. 127
20. मूल्यांकन — Pgs. 132
21. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए विद्यालय स्तर पर — कुछ महत्त्वपूर्ण सूचक (Indicators) 134
22. विद्यालय तथा उसके प्रमुख भागीदारों के कार्य एवं दायित्व — Pgs. 136
23. मिशन मानव विकास — Pgs. 142
24. शिक्षा संबंधी कुछ प्रेरक प्रसंग — Pgs. 145
25. कुछ बाल केंद्रित कविताएँ — Pgs. 150
26. कुछ बालगीत — Pgs. 156
27. राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत और कुछ प्रार्थना — Pgs. 162
डॉ. विनोदानंद झा शिक्षा-जगत् की एक बड़ी शख्सियत हैं। बिहार में शिक्षा के आधिकारिक जानकार, अध्येता एवं अनेक पुस्तकों के रचयिता हैं। इनके शिक्षा विषयक कई निबंध महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इनके द्वारा बच्चों एवं शिक्षकों में वैज्ञानिक चिंतन के विकास के लिए लिखे गए आलेखों, संपादित पत्रिकाओं एवं विज्ञान शिक्षण पर किए गए कार्यक्रमों की काफी सराहना हुई है।
यूनिसेफ संपोषित परियोजना-‘स्पीड’ में डॉ. झा ने योजना निर्माण और प्रशिक्षण के स्तर पर नवाचार एवं प्रयोगधर्मिता को प्रोत्साहित कर राज्य में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के सचिव के रूप में मूल्यांकन प्रणाली में संस्थागत परिवर्तन कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया।
‘पढ़ो पूर्वी चंपारण’ नामक नवाचारी प्रयोग पर राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (हृश्वक्क्न), भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2015 में इन्हें ‘राष्ट्रीय नवाचार पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया।
संप्रति निदेशक, जन शिक्षा (बिहार सरकार) के पद पर साक्षरता कार्यक्रमों, दलित तथा अल्पसंख्यक बच्चों की शिक्षा को नई दिशा दे रहे हैं।