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गुरु दत्त 1964 में दिवंगत हुए थे, पर गुजरते समय के साथ भारतीय सिनेमा पर गुरु दत्त की फिल्मों का प्रभाव एवं महत्त्व बढ़ता गया है। यह पुस्तक एक विलक्षण फिल्मकार और बेहतरीन सिने-कलाकार के जीवन तथा उसके कार्य को रेखांकित करती है, जिसने भारतीय सिने-जगत् को एक नया आयाम दिया, नए मायने दिए और एक नई लय-ताल दी।
प्रस्तुत पुस्तक में नसरीन मुन्नी कबीर ने इस गुणी और प्रतिभा-संपन्न कलाकार की फिल्मों का गहन अध्ययन करके तथा उनके परिवार, मित्रों और सह-कलाकारों के साथ साक्षात्कार करके उनके फिल्मी और निजी जीवन का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ तथा ‘साहिब, बीवी और गुलाम’ जैसी क्लासिक फिल्मों को बनाने की प्रक्रिया को बहुत बारीकी से उकेरा है, जिससे गुरु दत्त की फिल्मों की शानदार चमक उभरती है। तकनीशियन, संगीत निर्देशक, कलाकार और अन्य सहयोगियों, जिन्होंने गुरु दत्त के साथ निकटता से काम किया, ने अपने अनुभव और स्मृतियों को बाँटा है, जिससे गुरुदत्त के जीवन के अनेक अनजाने पहलू सामने आए हैं।
गुरु दत्त के अनेक दुर्लभ फोटोग्राफ और उनकी फिल्मोग्राफी से इस पुस्तक का महत्त्व और भी बढ़ गया है—न केवल फिल्मों में रुचि रखनेवालों के लिए, बल्कि एक सामान्य फिल्म-दर्शक के लिए भी।
नसरीन मुन्नी कबीर लंदन में एक स्वतंत्र निर्माता-निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं और ब्रिटेन के प्रतिष्ठित चैनल-4 टेलीविजन के लिए अनेक डॉक्यूमेंटरी बनाई हैं, जिनमें प्रमुख हैं—‘द इनर वर्ल्ड ऑफ शाहरुख खान’ (2004) तथा ‘इन सर्च ऑफ गुरु दत्त’ (1989)। वर्तमान में वे ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट के बोर्ड में गवर्नर हैं।