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भारत में गुरु-शिष्य-परंपरा सदियों नहीं, युगों पुरानी है, जो आज तक कायम है। गुरु हमेशा से सफल व्यक्तित्व, परिवार, समाज और राष्ट्र की नींव तथा रीढ़ रहे हैं।
आज भले ही कुछ ढोंगी बाबाओं के चलते गुरु-संतों को शक की दृष्टि से देखा जा रहा है, परंतु इससे जीवन में गुरु के महत्त्व और उनके योगदान को कम नहीं किया जा सकता; पर ऐसे में कई सवाल अवश्य उठते हैं, जैसे—गुरु कौन है? क्यों आवश्यक है गुरु? क्या पहचान है असली गुरु की? क्या हैं असली शिष्य के लक्षण, आदि?
यह पुस्तक आपको 44 विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरुओं के माध्यम से यह जानने में मदद तो करती ही है, साथ ही जिन्हें आप गुरु रूप में पूजते व मानते हैं, उनकी स्वयं की दृष्टि में गुरु कौन है तथा कैसे थे उनके अपने गुरु के साथ संबंध, इस विषय पर भी प्रकाश डालती है।
जीवन में आध्यात्मिक उत्थान करने का मार्ग प्रशस्त करनेवाली कृति।
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अनुक्रम
क्यों जरूरी है गुरु?—7
1. गुरु गुण लिखा न जाए—कबीर—13
2. गुरु और गुरु तत्त्व—ब्रह्मर्षि श्री देवराहा बाबा—22
3. गुरु की कृपा से प्रभु मिलते हैं—भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी—24
4. सच्चा गुरु मुक्त जीवात्मा है—श्रीरामकृष्ण परमहंस—27
5. गुरु परमात्मा का रूप होता है—रमण महर्षि—32
6. ईश्वर से संपर्क का सूत्र है—गुरु—परमहंस योगानंद—36
7. गुरु परमेश्वर के तुल्य नहीं हो सकता—स्वामी दयानंद सरस्वती—39
8. गुरु चेतना का आलोक पुंज है—श्री अरविंद—43
9. गुरु ज्ञान की धारा है—स्वामी राम—46
10. गुरु प्रसारण केंद्र की तरह होता है—मेहेर बाबा—50
11. असली गुरु को पहचानें—कृपालुजी महाराज—54
12. शब्द और नाम ही हमारा असली गुरु है—चरन सिंहजी महाराज—59
13. शिष्य वही, जो गुरु की इच्छा जाने—स्वामी चिन्मयानंदजी—62
14. क्या गुरु आवश्यक है?—जे. कृष्णमूर्ति—66
15. गुरु दही की भाँति है—ओशो—71
16. गुरु-शिष्य संबंध स्थापित करने के गुर—आचार्य महाप्रज्ञ—76
17. सद्गुरु की पहचान—ब्रह्मज्ञान—बाबा हरदेव सिंहजी महाराज—80
18. ऊर्जा का प्रतिरूप है गुरु—सद्गुरु जग्गी वासुदेव—84
19. गुरु ज्ञान का प्रतीक है—श्री श्री रविशंकर—89
20. बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता—श्री मोरारि बापू—94
21. अनगढ़ को सुगढ़ बनाता है गुरु—डॉ. प्रणव पंड्या—98
22. सद्गुरु सदा अंग-संग रहते हैं—संत राजिंदर सिंहजी महाराज—101
23. गुरु व्यक्ति नहीं शक्ति है—सुधांशुजी महाराज—106
24. गुरु ही हैं सच्चे पथ-प्रदर्शक—माता अमृतानंदमयी (अम्मा)—113
25. जीवन में एक गुरु जरूरी, फिर चाहे वह
— मिट्टी का द्रोणाचार्य ही क्यों न हो—मुनि तरुणसागरजी—115
26. सच्चा गुरु शरीरधारी नहीं हो सकता—ब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामीजी—119
27. गुरु ही सर्वस्व हैं—प्रमुख स्वामी महाराज—122
28. गुरु चैतन्यता में रमण करते हैं—दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा—126
29. गुरु और शिष्य संबंध—दादा वासवानी—130
30. गुरु वही, जो हमें हमारा ज्ञान कराए—निर्मला देवी—135
31. जीवन का आधार है—सद्गुरु—आनंदमूर्ति गुरु माँ—138
32. परमात्मा तक ले जाने का द्वार है गुरु—महायोगी पायलट बाबा—141
33. आत्मिक होता है गुरु—हरि चैतन्य महाप्रभु—143
34. दिव्य होता है गुरु—सतपालजी महाराज—146
35. आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है गुरु—सरश्री—149
36. गुरु सिद्धि नहीं शुद्धि देगा—अवधूत शिवानंद—152
37. ईश्वर से साक्षात्कार का माध्यम है गुरु—आशुतोष महाराजजी—155
38. गुरु आध्यात्मिक माँग की पूर्ति है—ज्ञानानंदजी महाराज—159
39. गुरु व्यक्ति नहीं तत्त्व है—आचार्य अवधेशानंद गिरीजी महाराज—162
40. गुरु बिन भव निधि तरहिं न कोई—श्री किरीट भाईजी—165
41. सद्गुरु पंथ नहीं पथ दिया करते हैं—श्री ब्रह्मर्षि गुरुदेव (तिरुपति)—169
42. सद्गुरु दीप समान—आचार्य श्री सुदर्शनजी महाराज—174
43. गुरु वासना रहित होता है—महर्षि महेश योगी—180
44. गुरु के सान्निध्य में आग है—टाट बाबा—182