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अथॉरिटी में एंगर नहीं है। हमें अपना रोल, अपनी रिस्पोंसिबिलिटी निभानी है, लेकिन सभी कार्य बिना डिस्टर्ब होकर करने हैं।
हम अथॉरिटी का प्रयोग करें, लेकिन गुस्सा नहीं करें। गुस्से में हम अंदर से डिस्टर्ब होकर अपने ऊपर कंट्रोल खो देते हैं। हम ऊपर से नीचे तक पूरी तरह हिल जाते हैं, लेकिन अथॉरिटी में हम पूरी तरह शांत व स्थिर रहकर कार्य करते हैं। अथॉरिटी में रहकर हम एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलते जाते हैं। हम सकारात्मक रहते हैं।
सामान्य जीवन में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसे क्रोध न आता हो, लेकिन एक सीमा के बाद क्रोध हमारे जीवन को डिस्टर्ब करने लगता है। हमें इस सीमा की पहचान करनी आवश्यक है। हम क्रोध को नेचुरल कहकर अपने क्रोध का बचाव नहीं कर सकते हैं। हमें क्रोधित होने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेनी होगी। जिम्मेदारी लेने से हम मजबूत बनते हैं और बहाना बनाने से हम कमजोर हो जाते हैं। यदि हम अपने क्रोध की जिम्मेदारी लेते हैं, तब हमें क्रोध-मुक्ति का रास्ता भी मिलेगा।
यदि पुस्तक में दिए गए उपायों का पालन किया जाए, तो हमें क्रोध से शत-प्रतिशत मुक्ति मिल सकती है, परंतु यदि पुस्तक में दिए गए थोड़े भी उपाय का पालन किया जाए, तो हमारा गुस्सा न्यूनतम स्तर पर अवश्य आ जाएगा।
डॉ. शिप्रा मिश्रा (अंजू) वर्तमान में होम्योपैथिक चिकित्सक के रूप में महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलाई जानेवाले प्रोजेक्ट मुंबई डिस्ट्रिक्ट एड्स कंट्रोल सोसाइटी के अंतर्गत राष्ट्र स्वास्थ्य प्रबोधिनी संस्था में मेडिकल सेवाएँ दे रही हैं। इसके साथ ही मुंबई में, ज्यूडिशियल अकादमी में मेडिकल ऑफिसर के पद पर भी सेवारत हैं।
जन्म : 2 फरवरी, 1971, सिधारी आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : सन् 1991 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास, अर्थशास्त्र व प्रतिरक्षा में स्नातक की उपाधि के पश्चात् प्राचीन इतिहास, पत्रकारिता व जनसंचार विषयों में परास्नातक की डिग्री।
पद एवं व्यवसाय : उत्तराखंड राज्य गठन के पश्चात् लोक सेवा आयोग द्वारा पी.सी.एस. 2002 के पहले बैच में जिला सूचना अधिकारी के रूप में चयनित। संप्रति देहरादून में सहायक निदेशक, सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग में सेवारत।
मो. : 9412074595
इ-मेल :
dio.hdr2010@gmail.com