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स्वामी विवेकानंद महान् स्वप्नद्रष्टा थे। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत का जो आधार विवेकानंद ने दिया, एक बौद्धिक आधार शायद ही ढ़ूँढ़ा जा सके।
स्वामीजी की दृष्टि में स्पष्ट हो चुका था कि भारत के अध्यात्म से पश्चिम की आत्मा को पुष्ट करना होगा और पश्चिम की वैज्ञानिक समृद्धि से भारत के तन का पोषण करना होगा। दोनों एक-दूसरे की प्रतिपूर्ति करेंगे, पूरक बनेंगे, तब मानवता का कल्याण होगा और इसके लिए स्वामी विवेकानंद को अमेरिका जाना होगा।
पवित्रता को नरेंद्रनाथ आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला मानते हैं। उनके लिए यह विधा दूषण का प्रतिरोध न होकर सर्व स्वस्ति से प्रगाढ़ प्रेम है। यह स्वस्ति कामना अपने व्यापकतम अर्थ में है, जो एक आध्यात्मिक शक्ति के रूप में सभी प्रकार के जीवन को अपने आगोश में लेती है।
परमहंस ने द्वैत-अद्वैत के प्रतीयमान विरोधाभास में एकता स्थापित की। इस बराबरी (धार्मिक बराबरी) का वैचारिक आधार भी एकमात्र अद्वैत ही प्रदान कर सकता है, क्योंकि इसमें किसी अन्य को अपने से अभिन्न ही माना जाता है और इसी आधार पर नैतिक आचरण का निर्माण होता है।
स्वामीजी को युवकों से बड़ी आशाएँ हैं। लेखक ने आज के युवकों के लिए ही इस ओजस्वी संन्यासी का जीवन-वृत्त उनके समकालीन समाज एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है।
जन्म : 29 नवंबर, 1951 को ग्राम-बिलरही जिला-महोबा (उ.प्र.) बुंदेलखंड।
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा गाँव में; प्रयाग विद्यालय से एम.एस-सी.। 1974 में आई.पी.एस. में योगदान। सेवाकाल में एल-एल.बी., पी-एच.डी. की उपाधियाँ अर्जित।
प्रकाशन : कवि, लेखक एवं नाटककार। हिंदी, अंग्रेजी में कुल तेरह पुस्तकें प्रकाशित। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित मासिक पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत’ में आलेख प्रकाशित। रामकृष्ण मिशन इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर, कोलकाता के प्रतिष्ठत फाउंडेशन डे ओरेशन 2012 का वक्तृता का सौभाग्य प्राप्त।
बिहार के पुलिस महानिदेशक पद से सेवा-निवृत्त। झारखंड सरकार के सुरक्षा सलाहकार (राज्यमंत्री समतुल्य) पद पर एक वर्ष से अधिक कार्य, तदोपरांत पद से त्याग-पत्र।
संपर्क : deokinandan.gautam@gmail.com