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Halke-Phulke   

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Author Pradeep Chaubey
Features
  • ISBN : 9789352664795
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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  • Kindle Store

More Information

  • Pradeep Chaubey
  • 9789352664795
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2024
  • 160
  • Hard Cover
  • 250 Grams

Description

हल्के-फुल्के में दीर्घकाय रचनाएँ चंद ही हैं, ये मजाक की संजीदगी को परत-दर-परत, आहिस्ता-आहिस्ता उघाड़ती हैं। इनमें ‘भुखमरे’ और ‘साठवाँ’ खास तवज्जुह की डिमांड करती हैं। व्यक्तिगत त्रासदी किस तरह अनुभूति की गहराई में उमड़-घुमड़कर सामुदायिक विडंबना को रूपाकर दे सकती है, इसका उम्दा नमूना।
और अंत में, दो बिल्कुल अलग तरह की रचनाओं का जिक्र न करना नाइनसाफी होगी। ये दोनों हिंदुस्तानी सिनेमा के प्रति उनके गहरे लगाव और समझ की नायाब मिसाल हैं। एक, हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णकालीन जादूगर ओ.पी. नैयर का इंटरव्यू यह ‘अहा! जिंदगी’ के अक्तूबर 2006 के अंक में प्रकाशित हुआ था। संयोग की विडंबना कि जनवरी 2007 में नैयर साहब का इंतकाल हुआ। यह उनकी जिंदगी का आखिरी इंटरव्यू है, जो उनकी पर्सनैलिटी के मानिंद ही बिंदास है। सिने-संगीत का वह करिश्मासाज संगीतकार, जिसने सार्वकालिक मानी जानेवाली गायिका भारत-रत्न लता मंगेशकर की आवाज का कभी इस्तेमाल नहीं किया। तब भी स्वर्ण युग में अपनी यश-पताका फहराकर दिखाई। दूसरी रचना है छह दशक पूर्व प्रदर्शित हुई राजकपूर निर्मित विलक्षण कृति ‘जागते रहो’ की रसमय मीमांसा। यह रचना ‘प्रगतिशील वसुधा’ के फिल्म-विशेषांक हेतु उनसे लिखवाने का सुयोग मुझे ही हासिल हुआ था। वहाँ वे कृति के मार्मिक विश्लेषण के साथ ही कृतिकार और समूचे सिनेमा से अपने अंतरंग लगाव का बेहद दिलचस्प, बेबाक बयान करने से भी नहीं चूकते। मुझे यकीन है कि रसिक पाठक इस पुरकशिश किताब का भरपूर लुत्फ उठाएँगे।
—प्रह्लाद अग्रवाल
सतना, 15 अगस्त, 2017

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अनुक्रम

प्रस्तावना—5

भूमिका—7

1. जंगल से शहर तक—11

2. आओ अतिथि—13

3. गोबर-गणेश—15

4. बुद्धिजीवी—17

5. समझौता—20

6. मियाँ सलाहुद्दीन—22

7. फ्री हैं क्या?—24

8. .गज़ला—26

9. नौ-नौ—27

10. जिस देश में... 28

11. जुगाली—29

12. पत्ता बाबा—30

13. भविष्यवाणी—31

14. आखिर—32

15. चैन नहीं उ.र्फ चेन्नई—33

16. दोस्ती—34

17. मैं क्या जानूँ?—35

18. आओ-खाओ—36

19. भरती—37

20. पानी की आवाज़—38

21. ज़बान सँभाल के—39

22. ये भी, वो भी—40

23. यहाँ भी, वहाँ भी—41

24. भूत रे भूत—42

25. गेटअप—44

26. जय बजरंग बली—46

27. शेरप्पन—51

28. बाल-बाल बचे—54

29. इस बार किसको?—57

30. पंद्रह अगस्त-पंद्रह अगस्त—59

31. स्वर्ग के कवि-सम्मेलन में गए हैं काका—65

32. जागो मोहन प्यारे—68

33. आह जुलाई!—70

34. मैं बेचारा—72

35. या इलाही, ये माजरा क्या है?—75

36. कलावंत चौबे—78

37. एक झूठी शिकार कथा—82

38. भुखमरे—91

39. मैं संगीत की एबीसीडी भी नहीं जानता—106

40. दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गए—118

41. साठवाँ—127

42. .फिल्म : जागते रहो—144

The Author

Pradeep Chaubey

जन्म : 26 अगस्त, 1949 (गणेश चतुर्थी) को चंद्रपुर (महाराष्ट्र) में।

शिक्षा : कला-स्नातक (नागपुर वि.वि.)।

रचना-संसार : ‘बहुत प्यासा है पानी’, ‘खुदा गायब है’ (़गज़ल संग्रह), ‘बाप रे बाप’ (हास्य-व्यंग्य कविताएँ), ‘आलपिन’ (छोटी कविताएँ), ‘चले जा रहे हैं’ (हास्य-व्यंग्य गज़लें) एवं कुछेक गद्य-व्यंग्य रचनाओं का कन्नड़ व गुजराती भाषाओं में प्रकाशन। ‘आरंभ-1’ (वार्षिकी), ‘आरंभ-2’ (गज़ल विश्वांक-1), ‘आरंभ-3’ (गज़ल विशेषांक), ‘आरंभ-4’ (गज़ल विश्वांक-2) का संपादन।

सम्मान-पुरस्कार : पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा द्वारा लोकप्रिय हास्य-कवि के रूप में सम्मानित, ‘काका हाथरसी पुरस्कार’, ‘अट्टहास युवा पुरस्कार’, ‘टेपा पुरस्कार’, ‘अट्टहास शिखर पुरस्कार’। बैंकॉक, हाँगकाँग, सिंगापुर, दुबई, बेल्जियम, अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, मस्कट, ऑस्ट्रेलिया, बहरीन आदि देशों की साहित्यिक यात्राएँ।

प्रसिद्ध युवा चित्रकार शिवाशीष शर्मा की 18 पुस्तकें कार्टूंस पर तथा 3 पुस्तकें पेंसिल आरेखन पर छप चुकी हैं। इनको चित्रकला संगम नई दिल्ली द्वारा ‘वर्ष का सर्वोत्तम कार्टूनिस्ट’ का पुरस्कार सन् 2007 में मिल चुका है।

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