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विश्व के सबसे बड़े व विलक्षण सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव हेडगेवार का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत् 1946 विक्रमी को हुआ था।
घोर निर्धनता में भी किशोर केशव का मन कभी धन-संग्रही बनने का इच्छुक नहीं हुआ और न उसकी तेजस्विता में कोई कमी आई। राष्ट्र के सौभाग्य से केशव का विकास राष्ट्रवादी, ध्येयनिष्ठ, तेजस्वी और स्वाभिमानी व्यक्ति के रूप में निरंतर होता चला गया। केशवराव ने डॉक्टरी शिक्षा तो प्राप्त की, पर उसे कभी अपना पेशा नहीं बनाया। राष्ट्र-चिंतन करते हुए डॉक्टरजी निरंतर अपने मित्र-मंडल का विस्तार करते रहे।
अंग्रेजी राजाज्ञा का उल्लंघन करने पर 1 मई, 1921 को डॉक्टरजी पर नागपुर में अंग्रेज सरकार ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया। स्वतंत्रता आज नहीं तो कल मिलनी है, इसे दीर्घजीवी कैसे बनाया जाए, इसी के समाधान स्वरूप विजयादशमी के पवित्र दिन, यानी 27 सितंबर, 1925 को उन्होंने अपने घनिष्ठ एवं प्रखर राष्ट्रवादी चिंतनशील मित्रों तथा राष्ट्रभक्त तरुणों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
जब संघ कार्य अपनी शैशवावस्था में ही था, तभी 21 जून, 1940 को डॉक्टर हेडगेवार का स्वर्गवास हो गया।
प्रस्तुत पुस्तक अखंड भारत के अनन्य सेवक, प्रखर राष्ट्रभक्त एवं समस्त हिंदू समाज को अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करानेवाले और नई पीढ़ी को संस्कारित करनेवाले महान् तपस्वी की जीवन-गाथा है।
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अनुक्रम
1. जन्मजात राष्ट्रभत—(1889-1904 ई.)—7
2. ‘वंदे मातरम्’ का जयघोष—(1905-1909 ई.)—14
3. कलका में अध्ययन और क्रांति-दीक्षा—(1910-1915 ई.)—20
4. सशस्त्र क्रांति की तैयारी—(1916-1918 ई.)—27
5. नागपुर का कांग्रेस-अधिवेशन—(1919-1920 ई.)—33
6. सहर्ष कारावास—(1921-1922 ई.)—41
7. विचार-मंथन—(1922-1923 ई.)—49
8. संघ की स्थापना—(1923-1926 ई.)—57
9. बाल-सूर्य की तेजस्विता—(1926-1927 ई.)—65
10. संघ के विकास-सूत्र और सरसंघचालकत्व—(1928-1929 ई.)—73
11. द्वितीय कारावास और संघ-विस्तार—(1930-1931 ई.)—83
12. कुशल नेतृत्व में संघ-प्रसार—(1932-1934 ई.)—97
13. संघ के बढ़ते चरण—(1935-1936 ई.)—111
14. नवीन उपलधियाँ—(1937-1938 ई.)—120
15. संघ का फौलादी स्वरूप—(1939 ई.)—132
16. अंतिम संदेश—(1940 ई.)—146
17. महाप्रयाण—(1940 ई.)—160
18. स्मृति-मंदिर——179
परिशिष्ट——193
जन्म : १० अप्रैल, १९३२।
बहुमुखी प्रतिभाशाली, अनेक विषयों के विद्वान्, विचारक और कवि। दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. (सान्ध्य) कॉलेज में हिन्दी के वरिष्ठ प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्त।
एम.एस-सी. (गणित)। संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी तथा भारतीय इतिहास व संस्कृति में एम.ए.। प्रथम श्रेणी के विद्यार्थी रहे। भारतीय इतिहास व संस्कृति में सर्वोच्च स्थान प्राप्त। ‘हिन्दी काव्य में शक्ति तत्त्व’ पर दिल्ली विश्वविद्यालय से विद्या वाचस्पति (पी-एच.डी.)।
विविध भाषाओं तथा ज्ञान-विज्ञान की अनेकानेक शाखाओं का गहन अध्ययन। १९५३ ई. में अकेले ही हिमालय को पैदल पार कर तिब्बत की यात्रा की। ‘केन्द्र भारती’ मासिक (विवेकानन्द केन्द्र, कन्याकुमारी) के सम्पादक रहे। भारतीय अनुशीलन परिषद्, बरेली (उ.प्र.) के निदेशक।
प्रकाशित कृतियाँ : ‘बृहत् विश्व सूक्ति कोश’ (तीन खण्डों में), ‘क्रान्तियोगी श्री अरविन्द’, ‘महायोगी श्री अरविन्द’, ‘श्री अरविन्द साहित्य दर्शन’, ‘श्री अरविन्द विचार दर्शन’, ‘हमारे सांस्कृतिक प्रतीक’, ‘भारत के मेले’, ‘भारत का संविधान’, ‘मर्यादा-पुरुषोत्तम श्रीराम’, ‘राष्ट्रनिर्माता स्वामी विवेकानन्द’।
स्मृतिशेष : २० नवम्बर, २००९।