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संघ के पंचम सरसंघचालक पूज्य सुदर्शनजी का ऋषितुल्य जीवन भौगोलिक व मत-पंथ की सीमाएँ लाँघकर देश-विदेश के लक्षावधि अंतःकरणों में एक प्रेरणापुंज के रूप में बसा है। हमारे ऋषियों ने कहा, ‘यानि अस्माकं सुचरितानि तानि त्वया सेवितम्’ यानी उनके जीवन के जो आदर्श हैं, सुचरितरूप श्रेष्ठ जीवन-मूल्य जिन्हें उन्होंने जिया, वह सद्मार्ग जिस पर चलकर उन्होंने मानवता के उच्च मानदंड स्थापित किए, उन्हें उनकी आनेवाली पीढ़ी यानी हम अपने जीवन के आचरण में ढालें, ताकि हम उन सद्गुण-सदाचार से युक्त उदात्त जीवन-मूल्यों और संस्कारों से युक्त जीवन जी सकें। पूज्य सुदर्शनजी के ऐसे तपोनिष्ठ व संकल्पवान् राष्ट्रसेवी जीवन का सान्निध्य जिन असंख्य लोगों को मिला, वे स्मृतियाँ उनके हृदय को सुवासित किए हुए हैं। एक बालक से लेकर स्वयंसेवक बनने, कार्यकर्ता के रूप में ढलकर प्रचारक जीवन का असिधारा व्रत स्वीकारने और विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए पूज्य सरसंघचालक के रूप में प्रतिष्ठित होने की उनकी यात्रा बड़ी प्रेरणास्पद है।
पूज्य सुदर्शनजी के जीवन की यह विविध पक्षीय प्रेरणा आनेवाले समय में राष्ट्र व समाज के सर्वतोमुखी उन्नयन हेतु लक्षावधि स्वयंसेवकों के लिए तो जीवंत रहे ही, समाज के अन्य वर्गों में भी उस जीवन-दृष्टि का विस्तार हो, यह महत् उद्देश्य ही इस ग्रंथ की रचना का आधार है।
विश्वास है कि यह ग्रंथ पूज्य सुदर्शनजी की यश-काया को अक्षुण्ण रखेगा और सबके लिए राष्ट्रभक्ति व समाजसेवा का पाथेय बनेगा।
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अनुक्रम
1. श्री सुदर्शनजी का ज्ञान-कर्म और भति —योगमय उत्कृष्ट जीवन——डॉ. मोहन भागवत—13
2. पूज्य सुदर्शनजी : एक प्रेरक और प्रखर नेतृत्व——भैयाजी जोशी —21
3. सरल, निष्कपट और सर्वभूत हितेरत: जीवन——मुरली मनोहर जोशी—26
4. सुदर्शनजी : ईश्वरीय कार्य के लिए —ईश्वर द्वारा भेजे गए महापुरुष——अशोक सिंघल—31
5. सुदर्शनजी : संघ शरण जीवन का एक आदर्श——माधव गोविंद वैद्य—34
6. वे कर्मयोगी की तरह जिए और — सच्चे कर्मयोगी की भाँति ही गए——देवेंद्र स्वरूप—40
7. श्री सुदर्शनजी : एक अनुकरणीय आदर्श ——के. सूर्यनारायण राव—45
8. ज्योति-पुंज सुदर्शनजी : एक निरहंकारी, —ध्येयनिष्ठ सक्रिय जीवन——डॉ. बजरंगलाल गुप्त—49
9. तब प्रतिबिंब-सा बन जाए जीवन——सुरेश सोनी—54
10. उार-पूर्वांचल की समस्याओं पर —गहरी सुदर्शन-दृष्टि——डॉ. कृष्ण गोपाल—59
11. सुदर्शनजी की प्रेरणा से बना —मुसलिम राष्ट्रीय मंच : एक नई राह——इंद्रेश कुमार—65
12. अदनों को बड़ा बना देनेवाला एक पारिवारिक संन्यासी——मृदुला सिन्हा—73
13. निर्मल मन सुदर्शनजी, जिनसे हर —मुलाकात में कुछ सीखना सुलभ था——रामबहादुर राय—77
14. हे प्रभु! यदि सुदर्शनजी का पुनर्जन्म हो —तो मुझे फिर अनुज ही बनाना——कुप्प्. सी. रमेश—84
15. सुदर्शनजी : संघ विचार-प्रवाह का —पूरक व्यतित्व——प्रो. राकेश सिन्हा —94
16. श्रद्धेय सुदर्शनजी, जो सबको ही अपने लगते थे——बल्देव भाई शर्मा —99
17. जब सात मुसलिम देशों के राजदूत —उनसे मिले और भारत से जुड़े——श्याम परांडे—104
18. श्री सुदर्शनजी : शिखर पर पहुँचकर भी —जो नींव के पत्थर ही बने रहे——प्रो. राजकुमार भाटिया—109
19. या महाप्रयाण का पूर्वाभास था उन्हें? ‘रक्षाबंधन’ के पहले ही —अंतिम बार राखी बँधाई थी उन्होंने ——प्रमिला ताई मेढ़े —112
20. वे सुदर्शन भी थे, सुवचन भी थे——रघु ठाकुर—118
21. एक साधारण स्वयंसेवक, जो सचमुच असाधारण था——अनुपम —122
22. तिबत के सच्चे मित्र और —समर्थक थे सुदर्शनजी——डॉ. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री—126
23. व्यतियों के विलक्षण पारखी थे सुदर्शनजी——रोशनलाल ससेना—133
24. वे परिपूर्णतावादी थे और सबको परिपूर्ण बनाने का —सतत् प्रयत्न करते रहे ——प्रो. सदानंद दामोदर सप्रे —136
25. उनमें नवाचार और परंपरा का अद्भुत समन्वय था— ———डॉ. सच्चिदानंद जोशी —143
26. सुदर्शनजी : गहरी बौद्धिक चेतना से —युत अति संवेदनशील व्यतित्व——असीम कुमार मित्र—148
27. श्री सुदर्शनजी : एक दूरदर्शी चिंतक एवं —कुशल मार्गदर्शक——विराग श्रीकृष्ण पाचपोर—157
28. सुदर्शनजी, जिन्होंने संघ-दर्शन को —जीवन में आत्मसात् किया——विमल कुमार चौरड़िया—162
29. उनके नेतृत्व में संघ द्रुत गति से आगे बढ़ा ——मधुकर राव चितले —164
30. जब उन्होंने जेल को भी संघमय कर दिया था——कृष्णकुमार अष्ठाना —168
31. राष्ट्र-चैतन्य के अप्रतिम द्रष्टा——डॉ. ब्रह्मदा अवस्थी—172
32. नवदधीच सुदर्शनजी : राष्ट्रअर्पित परिपूर्ण व्यतित्व——डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद —177
33. संस्कृति, संस्कार और —लोक-व्यवहार के अप्रतिम भाष्यकार——डॉ. शिवओम अंबर —183
34. जब अपनी कविताएँ सुदर्शनजी से सुनकर —अटलजी आश्चर्यचकित हुए——रामभाऊ शौचे—186
35. श्री सुदर्शनजी का शिव रूप——सतीश पिंपलीकर —189
36. सुदर्शनजी चिरंजीवी हैं——राजेंद्र शर्मा—190
उद्बोधन खंड
1. निडर हैं हम सभी, अमर हैं हम सभी——195
2. सा, संपत्ति, मान और यश मर्यादा में रहें तो दैवी होते हैं——213
3. स्वदेशी विकास पथ पर चलकर भारत विश्व के विकासशील देशों का
मार्गदर्शन और नेतृत्व करे——232
4. हिंदुओं का मतांतरण जारी रहा तो देश की एकता और अखंडता
को गंभीर खतरा ——253
5. हिंदू समाज को बलवान् और अजेय बनाना ही एकमात्र उपाय——268
6. पाँच पीढ़ियाँ खपाकर संघ ने आज यह मुकाम पाया है——286
7. समृद्धिशाली राष्ट्र-जीवन का एकमात्र आधार—अजेय राष्ट्रीय सामर्थ्य ——304
8. गंगा की धारा-सी पावन और प्रवहमान हिंदू राष्ट्र-जीवन की
अविरल धारा ——324
9. जम्मू का संगठित हिंदू : प्रतिकार वोट बैंक की — राजनीति को करारा जवाब ——340
10. सर्वव्यापी हिंदुत्व——356
11. आत्मिक प्रेम ही संघ कार्य का आधार——372
12. धारा 370 को बनाए रखना एक गलती है, उसे ठीक किया जाना चाहिए——390
13. विदेशों में रह रहे हिंदुओं को हिंदुत्व के आधार पर जोड़ रहा है हिंदू स्वयंसेवक संघ——400
14. संघ हिंदू समाज को अजेय और निर्भय बनाने के लिए कटिबद्ध ——415
15. जन्मदात्री माँ का दूध वर्ष-दो वर्ष, —परंतु गाय का दूध जीवन भर पोषण देता है——425
16. संस्कृति-आधारित राष्ट्रीयता का भाव सुदृढ़ करें ——440
17. भारत बनेगा विश्व का मार्गदर्शक——442
18. समाज को तोड़नेवाली शतियाँ पहले से अधिक सक्रिय,
उन्हें परास्त करें!——450
19. भारतीय मनीषा की अभिव्यति ही देशोन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगी ——452
20. नारी परिवार की धुरी है और स्त्री-पुरुष परस्पर पूरक——458
21. परंपरागत भारतीय पद्धति से ही जल समस्या का हल खोजें——464
22. सांस्कृतिक प्रदूषण के विरुद्ध जागृति——467
23. प्रकृति से सुसंगत धरा एवं पर्यावरण का रक्षक, —मानव-हितैषी चिंतन चाहिए——469
60. हमें अपना नया ‘युगधर्म’ निर्माण करना है——491
परिशिष्ट——516
जन्म : 6 अक्तूबर, 1955 को मथुरा जिले (उ.प्र.) के गाँव पटलौनी (बल्देव) में।
कृतित्व : पिछले पैंतीस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। स्वदेश, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, पाञ्चजन्य, नेशनल दुनिया का संपादन। देश के लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में ज्वलंत राष्ट्रीय व सामाजिक मुद्दों पर पाँच सौ से ज्यादा विचारपरक आलेख प्रकाशित। अनेक फीचर व वार्त्ता कार्यक्रम आकाशवाणी (दिल्ली) से प्रसारित।
देश के प्रायः सभी प्रमुख टी.वी. व समाचार चैनलों पर आयोजित समसामयिक व राष्ट्रीय मुद्दों पर होनेवाली पैनल चर्चाओं में गत कई वर्षों से नियमित भागीदारी। अनेक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों व प्रमुख शैक्षिक संस्थाओं में शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रीयता पर व्याख्यान।
प्रकाशन : ‘मेरे समय का भारत’, ‘आध्यात्मिक चेतना और सुगंधित जीवन’ पुस्तकों का प्रकाशन।
सम्मान : म.प्र. शासन का ‘पं. माणिकचंद वाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान’, स्वामी अखंडानंद मेमोरियल ट्रस्ट, मुंबई का रचनात्मक पत्रकारिता हेतु राष्ट्रीय सम्मान व ‘पंडित माधवराव सप्रे साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान’ सहित अन्य कई सम्मान।
संप्रति : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष।
baldev.bhai.sharma@gmail.com