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ज्ञानिनामाग्रगण्य सकल गुणनिधान कपिप्रवर हनुमान के बारे में कौन नहीं जानता? अद्वितीय प्रतिभा और अतुलित बल के कुबेर होते हुए भी उन्होंने स्वार्थ के लिए उसका उपयोग कभी नहीं किया। साधारण मनुष्य में यदि विद्या, गुण या कौशल आदि थोड़े से गुण भी आ जाएँ, तो वह दर्प से चूर हो जाता है, परंतु हनुमान सर्वगुण-संपन्न होकर भी सेवक ही बने रहे।
प्रस्तुत पुस्तक ‘हनुमानगाथा’ में संकट-मोचक हनुमान के संपूर्ण जीवन को रामायण, रामचरितमानस आदि ग्रंथों के परिप्रेक्ष्य में आत्मकथात्मक शैली में पवनपुत्र के श्रीमुख से विवेचन हुआ है। हनुमान का चरित्र अलौकिक गुणों से संपन्न असंभव को संभव बनानेवाला है।
आज के भौतिकवादी संसार में हनुमान के पावनचरित को अपनाए जाने की महती आवश्यकता है। वर्तमान में संसार को सेवा और भक्ति की पहले से कहीं ज्यादा आवश्यकता है। इसके लिए सबसे बड़े आदर्श और प्रेरणास्रोत हनुमान ही हो सकते हैं। इस नाते परोपकारी हनुमान का चरित अनुकरणीय है।
सुधी पाठक हनुमान के पावन गुणों को आत्मसात् कर घोर कष्टों और अशांति से निजात पाएँ, इसी में इस पुस्तक के लेखन की सफलता है।
जन्म : 4 जुलाई, 1944 को आगरा (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.एस-सी. (गणित), एम.एस-सी. (भौतिक शास्त्र), पी.एच-डी. (संगीत स्वर-शास्त्र)।
व्यवसाय :1966 में भारतीय प्रशासन सेवा (गुजरात केडर) में जुड़े, गुजरात सरकार और भारत सरकार में विविध पदों पर सेवा की, अब सेवानिवृत्त।
रुचियाँ : संगीत, खगोल शास्त्र, काव्य और अध्यात्म।
कृतित्व : ‘My stray thoughts on Srimad Bhagavadgeeta’, ‘Maths and Music’, ‘शरारे’, ‘कास-ए-दिल’ (उर्दू गजल-संग्रह), ‘दासी’ (भक्ति-कविताओं का संग्रह), ‘लेखनी मेरी, विचार उनके’ (अनुभवों का संग्रह), ‘श्रीमद्भागवत भूमिका’, ‘भ्रमर-गीत’, ‘रास पंचाध्यायी’।
संपर्क : प्लॉट सं. 852, सेक्टर-8, गांधीनगर, गुजरात-382007