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Hanumanji Ke Jeevan Ki Kahaniyan   

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Author Mukti Nath Singh
Features
  • ISBN : 9789388984003
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Mukti Nath Singh
  • 9789388984003
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 208
  • Hard Cover

Description

हनुमानजी के जीवन की महागाथाओं को वैसे तो शब्दों में पिरोना लगभग असंभव ही है, क्योंकि उनकी वीरता की गाथाएँ पृथ्वी से लेकर आकाश और पाताल तक—तीनों लोकों में फैली हैं। उन्होंने ‘सब संभव है’ को अपने जीवन में चरितार्थ किया। भूख लगी तो सूर्य देवता को ही फल समझ उनकी ओर छलाँग लगा दी, तब देवराज इंद्र को अपना वज्र चलाकर उन्हें रोकना पड़ा। रावण की स्वर्ण लंका को उन्होंने जलाकर राख कर दिया और तीनों लोकों को दहलानेवाला रावण भी असहाय बना बैठा रहा। पाताल लोक में जाकर उन्होंने न केवल भगवान् श्रीराम और लक्ष्मण को बचाया, वरन् वहाँ के दुष्ट राजा अहिरावण का वध भी किया। हनुमानजी भगवान् श्रीराम के परम भक्त हैं। उनकी भक्ति की शक्ति से ही वे स्वयं को शक्तिसंपन्न मानते हैं। उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया है कि अनन्य और समर्पित भक्ति से सबकुछ हासिल किया जा सकता है। राम-रावण युद्ध के दौरान वे एक केंद्रीय पात्र रहे और हर अवसर पर भगवान् राम के अटूट सहयोगी के रूप में सामने आए—चाहे वह लक्ष्मणजी को लगी शक्ति का विपरीत काल हो, चाहे नागपाश वाली घटना। हनुमानजी को सीता माता द्वारा अजर-अमर होने का वरदान प्राप्त है—अजर-अमर गुणनिधि सुत होऊ—वे त्रेता से लेकर द्वापर में भगवान् राम के श्रीकृष्ण अवतार में भी उनके सहयोगी बने और महाभारत संग्राम के दौरान अनेक बार उभरे। आज कलियुग में भी वे अपने भक्तों की पुकार सुनकर उनकी मदद को दौडे़ चले आते हैं।
अपूर्व भक्ति, निष्ठा, समर्पण, साहस, पराक्रम और त्याग की कथाओं का ज्ञानपुंज है हनुमानजी का प्रेरक जीवन।

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अनुक्रम

प्रस्तावना —Pgs. 7

अपनी बात —Pgs. 11

1. शिवजी का हनुमानावतार —Pgs. 17

2. माता अंजना —Pgs. 18

3. बचपन —Pgs. 19

4. महर्षि अगस्त्य का आख्यान —Pgs. 20

5. मातृ-शिक्षा —Pgs. 22

6. सूर्यदेव का सान्निध्य —Pgs. 24

7. ब्रह्मदेव का संदेश —Pgs. 28

8. हनुमान की चरणबद्ध योजना —Pgs. 32

9. महादेव का आगमन —Pgs. 41

10. हर और हनुमान की लीला —Pgs. 44

11. ब्रह्मर्र्षि विश्वामित्र के जन्म की कथा —Pgs. 61

12. सुग्रीव-सचिव हनुमान —Pgs. 92

13. दुंदुभि-वध कथा —Pgs. 97

14. श्रीराम का वन-गमन —Pgs. 98

15. श्रीराम और सुग्रीव के बीच मैत्री —Pgs. 99

16. सुग्रीव का राज्याभिषेक —Pgs. 102

17. जांबवानजी द्वारा हनुमानजी का उद्बोधन —Pgs. 104

18. हनुमानजी का समुद्र-लंघन ‘समुद्र-लंघन-विक्रम’ —Pgs. 105

19. सीतान्वेषण —Pgs. 109

20. हनुमानजी द्वारा अशोक वाटिका का अवलोकन —Pgs. 112

21. सीता-मिलन —Pgs. 117

22. सीताजी को हनुमानजी का श्रीरामजी का दूत होने का विश्वास —Pgs. 120

23. जयंत की धृष्टता की कथा —Pgs. 123

24. चूड़ामणि सहिदान —Pgs. 124

25. अशोक वाटिका एवं चैत्यप्रासाद का विध्वंस —Pgs. 126

26. प्रहस्त-पुत्र जंबुमाली-वध —Pgs. 127

27. सात मंत्री-पुत्रों का वध —Pgs. 127

28. लंकेश के पाँच सेनापतियों का वध —Pgs. 127

29. अक्षयकुमार का वध —Pgs. 128

30. मेघनाद द्वारा चलाए गए ब्रह्मास्त्र से बँधकर हनुमानजी का रावण की सभा में उपस्थित होना —Pgs. 130

31. रावण का व्यक्तित्व —Pgs. 132

32. हनुमानजी का परिचय —Pgs. 132

33. रावण को हनुमानजी का उपदेश —Pgs. 133

34. विभीषण का उपदेश —Pgs. 135

35. हनुमानजी की पूँछ में आग लगाना, सीताजी के संकल्प से अग्नि का शीतल हो जाना —Pgs. 136

36. लंकापुरी का दहन —Pgs. 137

37. हनुमानजी की वापसी एवं सीतान्वेषण का वृत्तांत —Pgs. 139

38. हनुमानजी का श्रीराम को सीताजी का वृत्तांत सुनाना —Pgs. 147

39. हनुमानजी द्वारा लंका के दुर्ग और सैन्य बल का वर्णन —Pgs. 150

40. हनुमानजी द्वारा विभीषण की शरण की अनुशंसा —Pgs. 151

41. धूम्राक्ष का वध —Pgs. 153

42. अकंपन का वध —Pgs. 155

43. रावण का मान-मर्दन —Pgs. 155

44. कुंभकर्ण के साथ हनुमानजी का युद्ध —Pgs. 157

45. हनुमानजी के हाथों देवांतक और त्रिशिरा का वध —Pgs. 159

46. हनुमानजी का हिमालय से दिव्य औषधियों का पर्वत लाना —Pgs. 160

47. हनुमानजी के हाथों निकुंभ का वध —Pgs. 162

48. मेघनाद द्वारा मायामयी सीता का वध —Pgs. 163

49. राक्षसों के साथ हनुमानजी का घोर युद्ध —Pgs. 164

50. निकुंभिला यज्ञशाला पर धावा —Pgs. 164

51. हनुमानजी द्वारा मेघनाद को द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारना —Pgs. 165

52. लक्ष्मणजी का मूर्च्छित होना, कालनेमि वध, संजीवनी बूटी लाना —Pgs. 166

53. श्रीराम के कहने पर हनुमानजी का सीताजी को रावण-वध का समाचार सुनाना —Pgs. 171

54. श्रीसीताजी और श्रीरामजी का मिलन —Pgs. 174

55. प्रभु श्रीराम के संदेश वाहक के रूप में हनुमानजी का निषादराज और भरतजी के पास जाना —Pgs. 175

56. भरतजी को हनुमानजी द्वारा वनवास-विषयक वृत्तांत सुनाना —Pgs. 177

57. श्रीराम का प्रत्यागमन —Pgs. 179

58. उपहार वितरण तथा विदाई —Pgs. 181

59. श्री हनुमान एक बहुमुखी व्यक्तित्व के स्वामी —Pgs. 184

60. भीम से हनुमानजी का मिलन —Pgs. 188

61. पंचमुखी हनुमान —Pgs. 193

62. अहिरावण-वध —Pgs. 194

63. हनुमदीश्वर —Pgs. 199

64. गायत्री के परम साधक —Pgs. 202

The Author

Mukti Nath Singh

मुक्ति नाथ सिंह
एम.कॉम. की पढ़ाई समाप्त करने के पश्चात् 1958 ई. में जीवन बीमा निगम में योगदान दिया तथा कई पदों पर पद स्थापित होने के पश्चात् 1992 के अंत में सहायक मंडल प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्ति हुई।
तदुपरांत स्वाध्याय में रत होकर रामायण, महाभारत, पुराण, भागवत गीता आदि जैसे बहुत सारे ग्रंथों का पारायण किया। यह पुस्तक इन ग्रंथों तथा पत्रिकाओं से प्राप्त हितकारी आख्यान एवं कथाओं का एक संगृहीत रूप है।

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