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"श्रीमद्वाल्मीकि रामायण और श्रीरामचरितमानस को केंद्र में रखकर अध्यात्म, कंब आदिरामायण, लोक-परंपराओं, विश्वासों और इतिहास-भूगोल की अवधारणाओं को सहेजते हुए, काव्य-परंपरा, साहित्य, शब्द-संपदा और संवेगों का अनुशीलन इस पुस्तक में किया गया है। अनेक ग्रंथों में वर्णित कथाओं की एक सूत्रता, उनके परस्पर भेद और उनकी युक्ति-तर्क प्रमाण उद्धरणों के साथ द्विवेदीजी ने प्रस्तुत किए हैं।
युगों में प्रवाहित रामकथा में मानव-चेतना के विकास-क्रम से आए परिवर्तन, अलग-अलग भाषा- संस्कृतियों में आकारित होता हुआ, उसका स्वर और जीवन की चिंताओं को सहेजती, उनका उत्तर खोजती रामकथा की सर्वहितैषिणी वृत्ति के अनेक सुंदर दृश्य इस पुस्तक में बारंबार दृष्टिगत होते हैं।
यह एक रामायण पाठ जैसा तो है ही, रामायण पाठ की प्रेरणा भी है, जिसे लेखक की सफलता के रूप में देखा जाना चाहिए। संस्कृत भाषा और आर्ष प्रतिपादन शैली से दूर होते गए लोक को सहज और सामाजिक निर्वचन के माध्यम से रामकथा के तत्त्वों से परिचित कराना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह परंपरा का पाठ है।"