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यह कलियुग है। मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है और दानवीय लीला का विकास। दुर्गुणों का बोलबाला है और सद्गुणों का लोप। चोरी, डकैती, हत्या आदि से मनुष्य संत्रस्त है। अनेक सामाजिक कुरीतियों—बाल-विवाह, विधवा-समस्या, दहेज प्रथा, भ्रूण-हत्या, बड़ा परिवार आदि ने मानव-मूल्यों को नष्ट कर रखा है। नैतिकता से कोई संबंध शेष नहीं रह गया है। समलैंगिक विवाह के पक्ष में भी लोग खड़े हो रहे हैं। प्रस्तुत सामाजिक उपन्यास ‘हर हर गंगे’ उपर्युक्त समस्याओं पर विमर्श प्रस्तुत करने के साथ ही निष्कर्ष भी उपस्थित करता है।
पात्रों के बीच सामाजिक समस्याओं पर विचार-विनिमय का ताना-बाना उपन्यास के कथ्य को बुनने में सहायक रहा है। पौराणिक कहानियों ने जरी के रूप में इस बनावट में चमक उत्पन्न की है। इस उपन्यास में हर व्यक्ति के जीवन की कहानी कही गई है। इसके सभी पात्र काल्पनिक हैं और सामाजिक औपचारिकताओं से बँधे हुए हैं। पौराणिक कहानियों का बोध कराने और विविध सामाजिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने में यह कृति सहायक सिद्ध होगी। अत्यंत रोचक, मनोरंजक और प्रेरणाप्रद उपन्यास।
जन्म : 9 जुलाई,1930 को वाराणसी स्थित कबीरचौरा में।शिक्षा विभाग के प्रशासनिक पदों पर कार्यरत रहे। सन्1948 से ही साहित्य-सृजन में संलग्न।कृतित्व : ‘काशी कभी न छोडि़ए’ (उपन्यास); ‘मेघदूत : पद्यबद्ध भावानुवाद’, ‘सागर-मंथन’, ‘मेरी कविता, मेरे गीत’, ‘काश!’ (कविता); ‘आधुनिक समीक्षा’, ‘साहित्य और सिद्धांत’, ‘कवि समीक्षा’, ‘लेखक समीक्षा’, ‘अभिनव रस-अलंकार-पिंगल’, ‘रीतिकालीन काव्य में नारी सौंदर्य’ (समीक्षा); ‘अभिनव निबंधावली’, ‘संघर्ष’, ‘सृजन के क्षण’, ‘व्यावहारिक हिंदी व्याकरण’ (निबंध); ‘मुहावरा एवं लोकोक्ति कोश’, ‘सचित्र हिंदी बाल शब्दकोश’, ‘घाघ और भड्डरी की कुछ कहावतें’ (संपादित)। ‘आती-पाती’, ‘हाथी-घोड़ा-पालकी’, ‘अक्कड़-बक्कड़’, ‘गाओ गीत : बजाओ ढोल’, ‘चंदा से कुट्टी’, ‘रंग-रंग के पक्षी आए’, (बाल कविताएँ); ‘क्रांतिवीर सुभाष’ (चरित्र काव्य); ‘कहावतों पर कहानियाँ’, ‘सोने की कुलहाड़ी’, ‘कहानी और कहानी’, ‘जाके पाँव न फटी बिवाई’, ‘बेताल की अँगूठी’ (कहानी); ‘एकांकी-सप्तक’, ‘स्वतंत्रता की वेदी पर’ (एकांकी); ‘हमारे आलोक स्तंभ’ (जीवनी) के साथ-साथ अनेक नाटक, नवसाक्षर साहित्य तथा जीवनियाँ लिखीं।सम्मान : हिंदी समिति, उ.प्र. का पुरस्कार; उ.प्र. हिंदी संस्थान का ‘बाल साहित्य भारती सम्मान’।