लोककथा को आज हम आदिमानव की आदिम विधा कहकर इतिश्री नहीं कर सकते, न ही इसे प्रारंभिक विधा कह नमन कर आगे बढ़ा सकते हैं, क्योंकि इन कहानियों में अब भी बहुत कुछ सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक-सा है, जो उसे न केवल सदा जिंदा रखेगा, बल्कि हमें मजबूर भी करेगा कि हम उसे अपने साथ रखें। लोककथा पर आज विभिन्न दृष्टिकोणों से शोध किए जाने की आवश्यकता है। जीवन में कहानी होती है और कहानी में जीवन। एक साधारण व्यक्ति अपने रोजमर्रा के कामों में, अपने हालातों में निरंतर खप रहा होता है। कहानी से वह रस पाया करता है, जो उसे चुनौतियों से टकराने में सहायता करता है।
हरियाणा की समृद्ध लोकसंस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं का दिग्दर्शन करवाती ये लोककथाएँ पाठकों के जीवन में अपूर्व उत्साह और आनंद का संचार करेंगी।
निशा
जन्म 24 अगस्त, 1978 में चरखी दादरी, हरियाणा में। स्कूली शिक्षा सरकारी स्कूल से पाईं। एम.फिल, पी-एच.डी. (हिंदी) की उपाधि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र से प्राप्त कीं। वर्तमान में स्वरुचि के आधार पर लोकसाहित्य संकलन कर रही हैं। पुस्तकें— ‘सावन सूखे ज्येष्ठ हरे’ (पहेली संकलन), ‘डैडण’ (संस्मरण)।
संप्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, श्रीकृष्ण राजकीय महाविद्यालय कंवाली, जिला-रेवाड़ी (हरियाणा) पिन-123411