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'मैंने अपनी जिंदगी में बंबई को मुंबई, कलकत्ता को कोलकाता और मद्रास को चेन्नई बनते देखा। समय बदला, नाम बदला और अब अगर बॉण्ड बदलकर बोंडा हो जाए तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा।’
इन पंक्तियों के साथ शुरू होता है उत्कृष्ट लेखक रस्किन बॉण्ड की रचनाओं का एक और अद्भुतसंकलन। साधारण स्थितियों की बेमिसाल समझ और तीक्ष्णता के साथ देखने की योग्यता के साथ रस्किन बॉण्ड हमें अपने घर, अपने गाँव और अपनी जिंदगी में झाँकने को आमंत्रित करते हैं। बंदरों, बनैले सुअरों, फूलों से डरनेवाली आंटी, खुद को महान् क्रिकेटर रणजी समझने वाला सनकी भतीजा और सात वर्षीय गौतम जैसे लोगों के साथ यह संकलन हर उम्र के पाठकों को दिलचस्प लगेगा।
हास-परिहास, व्यंग्य-विनोद के विविध रंगों से सजा रोचक कहानियों का पठनीय संकलन।"
जन्म 19 मई, 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। बचपन में ही मलेरिया से इनके पिता की मृत्यु हो गई, तत्पश्चात् इनका पालन-पोषण शिमला, जामनगर, मसूरी, देहरादून तथा लंदन में हुआ। इनकी रचनाओं में हिमालय की गोद में बसे छोटे शहरों के जन-जीवन की छाप स्पष्ट है। इक्कीस वर्ष की आयु में ही इनका पहला उपन्यास ‘द रूम ऑन रूफ’ (The Room on Roof) प्रकाशित हुआ। इसमें इनके और इनके मित्र के देहरा में रहते हुए बिताए गए अनुभवों का लेखा-जोखा है। भारतीय लेखकों में बॉण्ड विशिष्ट स्थान रखते हैं। उपन्यास तथा बाल साहित्य की इनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं। साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने 1999 में इन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।