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समय के निकष पर पककर लोकविश्वास, किंवदंतियाँ, लोकाचार, धार्मिक एवं सामाजिक मानयताएँ लोककथाओं का निर्माण करती हैं। इनका निर्माण या सृजन स्थापित होने में शताब्दियाँ लग जाती हैं, क्योंकि हर वक्ता या हर काथू का कथावाचक कुछ-न-कुछ अपना जोड़ता जाहा है और अंततः मौखिक यात्रा पर निकली लोककथा कुंदन बन जाती है।
धार्मिक विश्वासों में देवी-देवताओं का आशीर्वाद, धार्मिक स्थलों के प्रति अगाध श्रद्धा बोलियों की विविधता की लोककथाओं को विशिष्ट बना देती है। लोककथाओं में घर-परिवार, गाँव एवं समाज का संश्लिष्ट चित्रण तो आकर्षण उत्पन्न करता ही है, परंतु साथ ही पर्वतीय प्रदेश की बोली तसवीर प्रस्तुत करने में भी सहायक सिद्ध होती है। हिमाचल की लोककथाओं का अपना आस्वाद है। मनुष्य के सभी प्रकार के हाव-भाव इन लोककथाओं में रोचक, सार्थक एवं व्यवहारिक पक्ष में साकार हो उठते हैं। ये लोककथाएँ हर आयुवर्ग के पाठकों को गुदगुदाएँगी और सांकेतिक रूप के जीवन को उपयोगी ढंग से जीने एवं ढालने में सहायक होगी, इसमें संदेह नहीं।
डॉ. आशु फुल्ल
29 नवंबर, 1966 को लुधियाना (पंजाब) में जनमी डॉ. आशु फुल्ल ने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि राजकीय महाविद्यालय लुधियाना से प्रथम श्रेणी में अर्जित की। पी-एच.डी. की उपाधि पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से प्राप्त की। गत पच्चीस वर्षों से वह स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं को हिंदी साहित्य का इतिहास तथा अन्य विषय सामग्री पढ़ा रही हैं। आलोचना तथा शोध लेखिका के मनपसंद विषय हैं।
प्रकाशित पुस्तकें :कहानीकार प्रेमचंद; साहित्यिक निबंध (सह-संपादन); हिमाचल की हिंदी कविता; महादेवी वर्मा :व्यक्तित्व एवं कृतित्व; हिमाचल के हिंदी उपन्यास में नारी परिवेश; हिमाचल का हिंदी उपन्यास; हिंदी उपन्यास उद्भव एवं विकास; मुंशी प्रेमचंद की चर्चित कहानियाँ; मीराबाई :व्यक्तित्व एवं कृतित्व; हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास (सह-लेखक)।
तीन दर्जन से अधिक शोध एवं आलोचनात्मक लेख एवं पुस्तक समीक्षाएँ विभिन्न पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित। साहित्यिक पत्रिका ‘रचना’ का सह-संपादन; ‘शोध साहित्येतिहास’ में विशेष अभिरुचि।
संप्रति :शहीद कैप्टन विक्रम बतरा राजकीय महाविद्यालय, पालमपुर में हिंदी विभागाध्यक्ष एवं प्रवक्ता पद पर कार्यरत