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स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी को हिमांशु जोशी की कहानियों के बगैर पहचाना नहीं जा सकता। हिंदी कहानी ने जितनी भी रचनात्मक मंजिलें तय की हैं, उन रचना-यात्राओं और मंजिलों पर उनकी कोई-न-कोई कहानी आगे बढ़ती या मंजिल पर मौजूद मिलती है।
हिमांशु जोशी कहानी नहीं लिखते और न इनकी कहानियाँ बँधे-बँधाए ढाँचे में रूपाकार ग्रहण करती हैं, बल्कि वे मानस को आंदोलित करके अपना विधागत स्वरूप और महत्ता प्राप्त करती हैं। घटना, बात या सरोकार को कहानी की संवेदनात्मक सिद्धि दे देना उनकी नितांत अपनी विलक्षण कथन-प्रतिभा और उपलब्धि है। उनकी कहानियों में रचना और जीवन की अद्वितीय अन्विति है...कैसे जीवन-यथार्थ रचना बनता है और रचना कैसे जीवन-यथार्थ का पर्याय बन जाती है, यह उनकी दुर्लभ सृजन की कालजयी प्रतीति है, जो स्मृति की धरोहर बन जाती है। उनकी कितनी कहानियों को याद करूँ... ‘जलते हुए डैने’, ‘अंततः’, ‘रास्ता रुक गया है’, ‘काला धुआँ’, ‘तपस्या’ से लेकर विदेशी तथा अन्य अनुभव-भूमियों पर लिखी ‘सागर तट के शहर’, ‘अगला यथार्थ’, ‘आयतें’, ‘ह्वेनसांग...’, ‘एक बार फिर’ आदि को रेखांकित करूँ तब भी दसियों उत्कृष्ट कहानियाँ रेखांकित किए जाने की माँग करती हैं।
यह सही है कि हिमालय की हर चट्टान
से गंगा नहीं निकलती, लेकिन हिमांशु जोशी
के अनुभव-जन्य हिमालय की प्रत्येक चट्टान
से एक गंगा या एक उर्वरा नदी निश्चय ही निकलती है!’’
—कमलेश्वर
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अनुक्रम
भूमिका — Pgs. 5
1. सजा — Pgs. 9
2. किनारे के लोग — Pgs. 13
3. न जानना — Pgs. 23
4. आँखें — Pgs. 31
5. तलाश — Pgs. 43
6. जो घटित हुआ — Pgs. 49
7. तरपन — Pgs. 55
8. जलते हुए डैने — Pgs. 67
9. फासला — Pgs. 74
10. अनचाहे — Pgs. 78
11. नंगे पाँवों के निशान — Pgs. 89
12. नई बात — Pgs. 103
13. कोई एक मसीहा — Pgs. 110
14. गंधर्व-गाथा — Pgs. 117
15. तपस्या — Pgs. 126
16. अँधेरा और — Pgs. 131
17. साए — Pgs. 144
18. रथ-चक्र — Pgs. 149
19. अंततः — Pgs. 153
20. अथाह — Pgs. 160
21. मनुष्य-चिह्न — Pgs. 166
हिमांशु जोशी जन्मः4 मई, 1935, उत्तराखंड।
कृतित्व : यशस्वी कथाकारउपन्यासकार। लगभग साठ वर्षों तक लेखन में सक्रिय रहे। उनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं-'अंततः तथा अन्य कहानियाँ', 'मनुष्य चिह्न तथा अन्य कहानियाँ', 'जलते हुए डैने तथा अन्य कहानियाँ', 'संपूर्ण कहानियाँ, ‘रथचक्र', ‘तपस्या तथा अन्य कहानियाँ', ‘सागर तट के शहर' 'हिमांशु जोशी की लोकप्रिय कहानियाँ' आदि।
प्रमुख उपन्यास हैं-'अरण्य', ‘महासागर', 'छाया मत छूना मन’, ‘कगार की आग', 'समय साक्षी है', 'तुम्हारे लिए', ‘सुराज', 'संपूर्ण उपन्यास'। वैचारिक संस्मरणों में उत्तर-पर्व' एवं 'आठवाँ सर्ग' तथा कहानी-संग्रह ‘नील नदी का वृक्ष' उल्लेखनीय हैं। ‘यात्राएँ', 'नॉर्वे : सूरज चमके आधी रात' यात्रा-वृत्तांत भी विशेष चर्चा में रहे। उसी तरह काला-पानी की अनकही कहानी 'यातना शिविर में भी। समस्त भारतीय भाषाओं के अलावा अनेक रचनाएँ अंग्रेजी, नॉर्वेजियन, इटालियन, चेक, जापानी, चीनी, बर्मी, नेपाली आदि भाषाओं में भी रूपांतरित होकर सराही गईं। आकाशवाणी, दूरदर्शन, रंगमंच तथा फिल्म के माध्यम से भी कुछ कृतियाँ सफलतापूर्वक प्रसारित एवं प्रदर्शित हुईं। बाल साहित्य की अनेक पठनीय कृतियाँ प्रकाशित हुईं। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अनेक सम्मानों से भी अलंकृत।
स्मृतिशेष: 23 नवंबर, 2018, दिल्ली।