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प्रस्तुत सभी कहानियाँ लेखक की जन्मभूमि उत्तराखंड के जन-जीवन से संबंधित हैं। अधिकांश कहानियाँ लेखक द्वारा गढ़ी गई हैं किंतु कुछ कहानियाँ लोक में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी, बहुधा लोकस्मृति में बसी हुई भी हैं, जिन्हें बड़ी श्रद्धा के साथ लेखक ने शब्दों में पिरोया है।
इस संग्रह में सम्मिलित कहानियाँ अनेकानेक भावभूमियों पर आधारित हैं। सचमुच इन 32 कहानियों का वर्गीकरण करना हो तो कदाचित् एक दर्जन वर्ग निर्धारित करने पड़ेंगे। इनमें लोककथाएँ हैं, कहावतों पर आधारित कहानियाँ हैं, सैकड़ों वर्षों से लोकजीवन में दंतकथा के रूप में जीवित कहानियाँ हैं। इस संग्रह में पर्वतीय वीरों की कथाएँ हैं तो शृंगार और वात्सल्य की कहानियाँ भी हैं। इतना ही नहीं, इनसे पर्वतीय जीवनशैली, पर्वतीय देवी-देवताओं, मान्यताओं, विश्वासों तथा रीति-रिवाजों के संबंध में अनायास ही नई-नई जानकारियाँ पाठकों को प्राप्त होती हैं। लैंदी, खबोड़ और गलदार जैसे पहाड़ी बोली के सैकड़ों शब्दों का परिचय भी सहज ही हो जाता है।
हिमगिरि के गौरव का जयघोष करनेवाली एक पठनीय कृति।
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अनुक्रम
प्रस्तावना—7
दो शब्द—11
1. दो जोड़ी बैल—15
2. पूँडी की मौत—18
3. छिनार—22
4. जोगन की चूड़ियाँ—25
5. पुत्र-रत्न प्राप्ति—31
6. ओझाइन—35
7. औकात—38
8. अनबूझ प्रेम—40
9. निर्दोष अभियुक्त—43
10. सेठाइन की नथ—46
11. बेगारी—49
12. सिद्धी—54
13. बिल्ली-बिल्ला—63
14. ढोल सागर—68
15. भाग्यवान बुढ़िया—71
16. सौतन का बेटा—73
17. सैनिक की पत्नी—81
18. तीलू-रौतेली—89
19. भूत-भूतनी का मेला—99
20. बनख्वालों का गढ़—बनेखगढ़—111
21. दुर्दम्य दुर्ग-खलंगा—118
22. भंगाणी का युद्ध—125
23. रूपकुण्ड का रहस्य—131
24. रामी बौराणी (रामी बहूरानी)—137
25. अभिशप्त ग्राम—सेममुखेम—142
26. उत्तराखंड के इष्टदेव—गुरील—145
27. एक परकंड्याल क्या-क्या करे!—151
28. क्वीराल खाकर खिंखराल (स्वार्थ सिद्धि-स्वाहा!)—153
29. डोमा सल्ली का समाधान—154
30. जो फसल काटेगा, वो सिर भी देगा—155
31. उत्तराखंड के लोकगीतों की जननायिका-फ्यूँली—156
32. क्वीलीगढ़ का सरू ताल—158