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इस पुस्तक में ‘हिंद स्वराज’ के प्रकाश में महात्मा गांधी के जीवन की विराट् यात्रा का संक्षिप्त वर्णन है, जो साधारण व्यक्त को भी महानतम कार्य करने के लिए प्रेरित करता है और वह अपने आराध्य के प्रति उसी तरह लीन हो सकता है, जिस तरह महात्मा गांधी ने अंतिम क्षणों में अपने आराध्य का नाम ‘हे राम’ के रूप में उच्चारित किया था, जो संपूर्ण मानवता के लिए संदेश था। वास्तव में गांधीजी ने तो अपने जीवन भर की तैयारी को ही बोला था, जिसके संबंध में तुलसीदासजी ने भी लिखा है, "जनम-जनम मुनि जतन कराहीं, अंत राम कहि आवत नाहीं।" इस तरह महात्मा गांधी ने सत्य की खोज में ही अपने मोक्ष का मार्ग ढूँढ़ लिया था। सत्य रूप में ‘हिंद स्वराज’ के आलोक में इनके जीवन की यात्रा से निकले वचन, संदेश बनकर सारी मानवता के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुए हैं।
वास्तव में इनकी यात्रा की सार्थकता तब तक पूरी नहीं होती, जब तक मनुष्यत्व की खोज पूर्ण नहीं होती। इस तरह मानवता की अनंत यात्रा में ‘हिंद स्वराज’ एक प्रकाश की तरह सभी को मार्ग दिखाता रहेगा।