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Hindi Patrakarita Ka Itihas   

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Author Jagdish Prasad Chaturvedi
Features
  • ISBN : 9789352664764
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Jagdish Prasad Chaturvedi
  • 9789352664764
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2017
  • 396
  • Hard Cover
  • 450 Grams

Description

भारतवर्ष में पत्रकारिता के प्रवेश के साथ ही हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत हुई। भारत में छापेखाने पहले ही आ चुके थे। बंबई में सन् 1674 में एक प्रेस की स्थापना हुई और मद्रास में सन् 1772 में एक प्रेस स्थापित हो चुका था। उस समय भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों के सामने अनेक समस्याएँ थीं, जबकि वे नया ज्ञान अपने पाठकों को देना चाहते थे।
उस काल में ज्ञान के साथ-साथ समाज-सुधार की भावना भी उन लोगों में थी। सामाजिक सुधारों को लेकर नए और पुराने विचारवालों में अंतर भी होते थे, जिसके कारण नए-नए पत्र निकाले गए। हिंदी के प्रारंभिक संपादकों के सामने एक समस्या यह भी थी कि भाषा शुद्ध हो और सबको सुलभ हो।
भारतीय भाषाओं के पत्र-पत्रिकाओं का उत्तरोतर विकास होता गया; परंतु कुछ पत्रों को ब्रिटिश सरकार की ज्यादतियों और दमन के आगे घुटने टेकने पड़े और वे बंद हो गए। हिंदी पत्रकारिता उन संपादकों एवं साहित्यिकों की ऋणी है, जिन्होंने इसे आगे बढ़ाने और उसमें निखार लाने में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया।
प्रस्तुत पुस्तक में उन्हें संक्षेप में याद कर लिया गया है तथा किन परिस्थितियों में उन्होंने पत्रकारिता की सेवा की, भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में पत्रकारिता की कुल मिलाकर क्या भूमिका रही, उसकी शक्‍ति तथा उसकी कमजोरी क्या रही—इसका विवेचन किया गया है।
आशा है, इससे हिंदी-प्रेमियों और हिंदी के सुधी पत्रकारों का भरपूर ज्ञानवर्द्धन होगा और हिंदी पत्रकारिता के इतिहास से भलीभाँति परिचय होगा।

The Author

Jagdish Prasad Chaturvedi

2 नवंबर, 1920 को जगम्मनपुर, जिला जालौन (उ.प्र.) में जनमे श्री जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी वरिष्‍ठ लेखक एवं पत्रकार थे। बी.ए., एलएल.बी. करने के बाद वह पत्रकारिता की ओर उन्मुख हुए और ‘आज’, ‘हिंदुस्तान’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘दैनिक केसरी’, ‘पायनियर’, ‘स्वतंत्र भारत’, ‘आर्यवर्त’ और ‘देशबंधु’ जैसे प्रमुख पत्रों में कार्य किया। वह ‘लोकराज’ नामक पत्र के भी संपादक रहे।
श्री चतुर्वेदी ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ के सलाहकार रहे और इससे पूर्व ‘समाचार भारती’ और ‘पीपल्स प्रेस ऑफ इंडिया’ जैसी संवाद समितियों से संबद्ध रहे। भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ के वह संस्थापक महासचिव और अध्यक्ष भी रहे। वह पत्रकार आंदोलन में खूब सक्रिय रहे। वयोवृद्ध पत्रकार श्री बनारसीदास चतुर्वेदी के साथ उन्होंने पाक्षिक ‘मधुकर’ में काम किया था और उस समय उन्हें प्रवासी भारतवासियों की समस्याओं में रुचि जागी।
हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषा के जानकार श्री चतुर्वेदी एक अच्छे राजनीतिक टीकाकार थे। ऐतिहासिक विषयों पर उनकी कई पुस्तकें, यथा—‘चीनी विस्तारवाद के दो हज़ार वर्ष’, ‘हिंद महासागर और प्रवासी क्रांतिकारी’ प्रकाशित हैं।
प्रस्तुत पुस्तक श्री जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी की अंतिम कृति है।

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