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हिंदी साहित्य का भंडार पर्याप्त समृद्ध है। गद्य तथा पद्य की लगभग सभी विधाओं का प्रचुर मात्रा में साहित्य-सर्जन हुआ है। अनेक कालजयी कृतियाँ सामने आईं। लेखक-कवियों ने भी सर्जना के उच्च मानदंड स्थापित किए, जिन पर साहित्य-सृजन को कालबद्ध किया गया; वह युग उनके नामों से जाना गया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने गहन शोध और चिंतन के बाद हिंदी साहित्य के पूरे इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाली है।
हिंदी भाषा के मूर्धन्य इतिहासकार- साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का जो इतिहास रचा है, वह सर्वाधिक प्रामाणिक तथा प्रयोगसिद्ध ठहरता है। इससे पहले भी हिंदी का इतिहास लिखा गया; पर आचार्यजी का ज्ञान विस्तृत फलक पर दिग्दर्शित है। इसमें आदिकाल यानी वीरगाथा काल का अपभ्रंश काव्य एवं देशभाषा काव्य के विवरण के बाद भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी, प्रेममार्गी, रामभक्ति शाखा, कृष्णभक्ति शाखा तथा इस काल की अन्य रचनाओं को अपने अध्ययन का केंद्र बनाया है। इसके बाद के रीतिकाल के सभी लेखक-कवियों के साहित्य को इसमें समाहित किया है।
अध्ययन को आगे बढ़ाते हुए आधुनिक काल के गद्य साहित्य, उसकी परंपरा तथा उत्थान के साथ काव्य को अपने विवेचन केंद्र में रखा है। हिंदी साहित्य का क्षेत्र चहुँदिशि विस्तृत है। हिंदी साहित्य के इतिहास को सम्यक् रूप में तथा गहराई से जानने-समझने के लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल का यह इतिहास-ग्रंथ सर्वाधिक उपयुक्त है।
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अनुक्रम
प्रथम संस्करण का वक्तव्य — Pgs. 5
संशोधित और परिवर्धित संस्करण के संबंध में दो बातें — Pgs. 11
काल विभाग — Pgs. 15
आदिकाल (वीरगाथा, काल संवत् 1050-1375)
1. सामान्य परिचय — Pgs. 19
2. अपभ्रंश काव्य — Pgs. 22
3. देशभाषा काव्य — Pgs. 40
4. फुटकल रचनाएँ — Pgs. 58
पूर्व-मध्यकाल (भक्तिकाल, संवत् 1375-1700)
1. सामान्य परिचय — Pgs. 67
2. ज्ञानाश्रयी शाखा — Pgs. 79
3. प्रेममार्गी (सूफी) शाखा — Pgs. 94
4. रामभक्ति शाखा — Pgs. 111
5. कृष्णभक्ति शाखा — Pgs. 141
6. भक्तिकाल की फुटकल रचनाएँ — Pgs. 174
उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल, संवत् 1700-1900)
1. सामान्य परिचय — Pgs. 207
2. रीति ग्रंथकार कवि — Pgs. 215
3. रीतिकाल के अन्य कवि — Pgs. 279
आधुनिक काल (गद्यकाल, संवत् 1900-1980)
1. सामान्य परिचय : गद्य का विकास — Pgs. 347
2. गद्य साहित्य का आविर्भाव — Pgs. 373
3. आधुनिक गद्यसाहित्य परंपरा का प्रवर्तन प्रथम उत्थान (संवत् 1925-1950) — Pgs. 383
4. गद्य साहित्य परंपरा का प्रवर्तन : प्रथम उत्थान — Pgs. 391
5. गद्य साहित्य का प्रसार द्वितीय उत्थान (संवत् 1950-1975) — Pgs. 415
6. गद्य साहित्य का प्रसार — Pgs. 419
7. गद्य साहित्य की वर्तमान गति तृतीय उत्थान (संवत् 1975 से) — Pgs. 451
काव्यखंड (संवत् 1900-1925) — Pgs. 486
काव्यखंड (संवत् 1925-1950) — Pgs. 495
काव्यखंड (संवत् 1950-1975) — Pgs. 505
काव्यखंड (संवत् 1975) — Pgs. 536
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 को बस्ती जिले के अगोना गाँव में हुआ। सन् 1901 में प्रयाग के कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज में एफ.ए. पढ़ने के लिए गए, परंतु गणित में कमजोर होने के कारण शीघ्र ही उसे छोड़कर ‘लीडरशिप’ की परीक्षा पास करनी चाही, उसमें भी वे असफल रहे। परंतु इन परीक्षाओं की सफलता या असफलता से अलग वे बराबर साहित्य, मनोविज्ञान, इतिहास आदि के अध्ययन में लगे रहे। उन्होंने हिंदी, उर्दू, संस्कृत एवं अंग्रेजी के साहित्य का गहन अनुशीलन किया।
उन्होंने ‘हिंदी शब्द सागर’ के साथ ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का संपादन भी किया। सन् 1937 ई. में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी-विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए एवं इस पद पर रहते हुए ही सन् 1941 में उनकी हृदय गति रुक जाने से मृत्यु हो गई।
उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ीबोली में फुटकर कविताएँ लिखीं तथा एडविन आर्नल्ड के ‘लाइट ऑफ एशिया’ का ‘बुद्ध चरित’ के नाम ब्रजभाषा में पद्यानुवाद से किया। मनोविज्ञान, इतिहास, संस्कृति, शिक्षा एवं व्यवहार संबंधी लेखों एवं पत्रिकाओं के भी अनुवाद किए हैं। दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी ‘विश्व प्रपंच’ पुस्तक उपलब्ध है। संपूर्ण लेखन में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण एवं कालजयी रूप समीक्षक, निबंध-लेखक एवं साहित्यिक इतिहासकार के रूप में प्रकट हुआ।