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भारतीय जनमानस में वैदिक धर्म का जो वर्तमान स्वरूप आजकल में देखने को मिलता है, उसे आज का तर्कशील और वैज्ञानिक दृष्टि रखनेवाला मानव अंधविश्वास, आस्था व रूढि़वाद की संज्ञा देता है। प्रायः देखा जाता है कि पढ़े-लिखे लोग, जो अपने आपको बुद्धिजीवी मानते हैं, अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों, मान्यताओं के वर्तमान स्वरूप की या तो उपेक्षा करते हैं या उन्हें अपने व्यंग्य और मनोरंजन का विषय बनाते हैं।
ऐसे अनेक लोगों का तो यह भी मानना है कि हमारी धार्मिक मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है। परंतु यह उनके अज्ञान का परिचायक है। वास्तव में हमारे धर्म का एक सुदृढ़ वैज्ञानिक आधार है। जरूरत बस, उसके मूल और मर्म को समझने की है।
प्रस्तुत पुस्तक में सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति से जुड़ी मान्यताओं, परंपराओं, रीति-रिवाजों एवं धर्म-कर्म के पीछे जो गहरा विज्ञान है, उसे बड़े ही सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया गया है। इसके अध्ययन से जन सामान्य का अंध-विश्वास दूर हो और वे तथा भावी पीढि़याँ अपनी मान्यताओं एवं धरोहर पर गर्व कर सकें, तो इस पुस्तक का लेखन-प्रकाशन सार्थक होगा।
12 नवंबर, 1939 को दिल्ली में जन्म। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक एवं पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। रक्षा सेवा में एक कमीशंड अधिकारी के रूप में उनतीस वर्षों की सेवा के उपरांत सन् 1992 में सेवानिवृत्त। रक्षा सेवा में आने से पूर्व कुछ समय तक बंगाल सिविल सर्विसेज में डिप्टी कलेक्टर एवं मजिस्ट्रेट के रूप में भी कार्य किया।
पूरे भारत सहित कई देशों, जैसे—जापान, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, मॉरीशस, सिंगापुर और दुबई का भी भ्रमण।
भारत के राष्ट्रध्वज तिरंगे पर पुस्तक लिखनेवाले पहले व्यक्ति। इसके अतिरिक्त तिरंगे तथा झंडों से संबंधित एक अन्य पुस्तक ‘झंडों की रंग-बिरंगी दुनिया’ की रचना भी की, जो ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ द्वारा प्रकाशित है। उनके द्वारा भारत के विभिन्न धर्मों, महान् संतों, उपदेशकों, सुधारकों एवं अन्य कई विषयों पर विभिन्न पुस्तकें प्रकाशित हैं।