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हिंदू खटिक जाति की उत्पत्ति, उत्थान एवं पतन की ऐतिहासिक घटनाओं एवं विभिन्न कालखंडों का इस कृति में सजीव चित्रण है। वैदिक काल के बलि देने वाले खट्टिक (ब्राह्मण) त्रेता युग के पहले भगवान् श्रीराम के कुल के पूर्वज राजा खट्वाग (क्षत्रिय), द्वापर युग यानी महाभारत काल के पूर्व काशी अथवा मिथिलांचल में मांस का व्यवसाय करने वाले ऋषि व्याघ्र (वैश्य) और मुगलकाल में महाराष्ट्र के संत उपासराव एवं ब्रिटिश काल में राजस्थान के संत दुर्बल नाथ (दलित) को अपना पूर्वज मानने वाले हिंदू आज खटिक जाति के लगभग 1871 गोत्रों, उपनामों एवं उपजातियों के रूप में पहचाने जाते हैं। तैमूर लंग के लूटपाट एवं अत्याचार का मुहतोड़ प्रत्युत्तर कठोर राज्य के कठिकों (खटिक) ने दिया था। सिकंदर के विश्व विजय के स्वप्न को भी खटिक जाति ने ही चूर-चूर किया था। विदेशी मुगल, तुर्क एवं मुसलिम आक्रांता शासकों के हिंदू उत्पीड़न तथा हिंदुस्थान में हिंदुओं को हिंदू होने का यानी हिंदू टैक्स अथवा जजिया कर का खुलकर विरोध महान् हिंदू खटिक जाति ने किया था। विदेशी मुसलिम आक्रांताओं के हिंदुस्थान में प्रवेश से लेकर उनके शासन तक लगातार डटकर यदि किसी ने उनका विरोध किया तो खटिक जाति ने किया। अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक मेरठ के ‘तितौरिया’ भी खटिक ही थे।
सामाजिक समरसता दर्शन की दिशा में चिंतन के लिए बाध्य करती इस कृति से संपूर्ण हिंदू समाज को सकारात्मक चिंतन की एक दिशा प्राप्त होगी।
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अनुक्रम
आमुख — Pgs. 5
विचार भूमि — Pgs. 11
प्रस्तावना — Pgs. 25
अध्याय-1
हिंदू धर्म में खटिक वंश एवं गोत्र — Pgs. 47
1.1 प्रागैतिहासिक काल एवं आखेट युग — Pgs. 48
1.2वैदिक काल का खट्टिक — Pgs. 53
1.3 सनातन संस्कृति एवं हिंदू धर्म — Pgs. 57
1.4 मध्यकालीन काठियावाड़ एवं कठ तथा कठिक जाति — Pgs. 62
1.5 खटिक वंश एवं गोत्र — Pgs. 68
1.6 खटिक जातियों का राजवंशीय इतिहास — Pgs. 72
1.7 खटिक जाति का भौगोलिक प्रत्यक्षीकरण एवं रहन-सहन — Pgs. 74
1.8 खटिक एवं खटिक जाति का उपनाम — Pgs. 77
अध्याय-2
खटिक वंश में ज्ञानी धर्म-पुरोधा एवं खटिक जीवन-वृत्ति — Pgs. 81
2.1 हिंदुस्थान में ऋषि-परंपरा — Pgs. 82
2.2 प्राचीन हिंदू धर्म एवं ज्ञान के पुरोधा — Pgs. 83
2.3 हिंदू धर्म में खटिक जाति का प्रमुख स्थान — Pgs. 87
2.4 खटिक वंश में ज्ञानी एवं धर्म पुरोधा — Pgs. 89
2.5 महर्षि व्याघ्र एवं उनकी रचना व्याघ्र गीता — Pgs. 92
2.6 महात्मा सदन खटिक का मांस-व्यवसाय — Pgs. 95
2.7 संत शिरोमणि दुर्बलनाथ — Pgs. 97
2.8 खटिक जाति की जीवन-वृत्ति — Pgs. 100
अध्याय-3
विदेशी मुसलिम आक्रांताओं से खटिक वंश का ऐतिहासिक युद्ध — Pgs. 107
3.1 ‘सोने की चिडि़या’—हिंदुस्थान की समृद्धि — Pgs. 108
3.2 मिलिंद को पढ़ाया अहिंसा का पाठ और सिकंदर के स्वप्न
को किया भंग — Pgs. 111
3.3 अरब-आक्रमण का दिया मुँहतोड़ जवाब — Pgs. 113
3.4 महमूद गजनबी के साथ लगातार युद्ध — Pgs. 116
3.5 इसलामिक आक्रांता मुहम्मद गौरी एवं तत्कालीन खटिक वंश — Pgs. 119
3.6 तैमूरलंग से अपने दम पर लिया लोहा — Pgs. 121
3.7 आंतरिक कलह एवं आक्रांताओं के षड्यंत्र से हिंदू हुए पराजित — Pgs. 124
3.8 विदेशी आक्रांताओं के दमन-चक्र का निरंतर विरोध — Pgs. 125
अध्याय-4
खटिक जाति द्वारा हिंदू धर्म, संस्कृति एवं स्वाभिमान की रक्षा — Pgs. 134
4.1 उत्तर भारत में हिंदू एवं मुसलमानों का युद्ध — Pgs. 135
4.2 इसलामिक जेहाद का मुँहतोड़ जवाब — Pgs. 140
4.3 विदेशी इसलामिक शासकों द्वारा धर्मपरिवर्तन अभियान — Pgs. 141
4.4 खटिक जाति द्वारा हिंदू धर्म रक्षा — Pgs. 145
4.5 धर्म रक्षार्थ सुअर पालन — Pgs. 147
4.6 सुअर व्यवसाय एवं हिंदू संस्कृति निर्वहन — Pgs. 150
4.7 इसलामिक निरंकुशता की टक्कर लेती खटिक जाति — Pgs. 152
4.8 हिंदू स्वाभिमान की रक्षक खटिक जाति — Pgs. 155
अध्याय-5
विदेशी मुसलिम एवं अंग्रेज शासकों के अत्याचार की शिकार खटिक जाति — Pgs. 158
5.1 खटिक जाति एक योद्धा जाति — Pgs. 159
5.2 विदेशी मुसलिम शासकों से भयंकर टक्कर — Pgs. 163
5.3 मुसलमान शासकों के प्रचंड उत्पीड़न से बचने हेतु हिंदुओं का
बड़ी संख्या में जंगल में पलायन — Pgs. 164
5.4 मुसलिम आक्रांताओं के भयानक अत्याचार की शिकार खटिक
जाति के लोग — Pgs. 170
5.5 हिंदू धर्म रक्षा — Pgs. 174
5.6 अंग्रेजों से पुनः टकराव एवं उनके द्वारा अपराधी जाति घोषित — Pgs. 176
5.7 अंग्रेजों द्वारा खटिक जाति का भारी सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न — Pgs. 181
5.8 सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न से खटिक हुए दलित — Pgs. 186
अध्याय-6
स्वतंत्रता आंदोलन में खटिक जाति की अग्रणी भूमिका — Pgs. 194
6.1 अंग्रेजी शासन का खटिक जाति द्वारा भारी विरोध — Pgs. 195
6.2 अंग्रेजों द्वारा स्थापित कस्टम रेखा का उल्लंघन — Pgs. 197
6.3 स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम ‘मेरठ 1857 की क्रांति’ के
असली नायक खटिक वंश के तितोरिया — Pgs. 200
6.4 स्वतंत्रता सेनानियों की तरह खटिक जाति अंग्रेजी शासन में
अपराधी घोषित — Pgs. 203
6.5 खटिक स्वतंत्रता सेनानी देश भर में — Pgs. 205
6.6 गांधी आंदोलन और खटिक समाज — Pgs. 211
6.7 धर्म, संस्कृति एवं मातृभूमि पर खटिक जाति न्योछावर — Pgs. 214
6.8 मातृभूमि के असली सपूत खटिक — Pgs. 219
अध्याय-7
हिंदू संस्कृति एवं राष्ट्रीयता की पहचान खटिक — Pgs. 222
7.1 हिंदुस्थान के प्रत्येक भाग में खटिक जाति — Pgs. 223
7.2 हिंदू धर्म और संस्कृति की वाहक खटिक जाति — Pgs. 227
7.3 भारतीय अर्थव्यवस्था की मेरुदंड हिंदू खटिक जाति — Pgs. 232
7.4 खटिक जाति की पहचान हिंदू धर्म रक्षक — Pgs. 236
7.5 विश्वव्यापी उग्रवाद की पर्याय इसलामिक ताकत को
खटिक जाति प्रत्योत्तर देने में सक्षम — Pgs. 238
7.6 राजनीतिक ढाँचें में खटिक जाति अति महत्त्वपूर्ण — Pgs. 242
7.7 खटिक जाति की सांस्कृतिक राष्ट्रवादी मानसिकता — Pgs. 244
7.8 हिंदू खटिक जाति का उज्ज्वल भविष्य — Pgs. 246
अध्याय-8
खटिक जाति का पुनरुत्थान एवं सशक्तीकरण — Pgs. 251
8.1 दलित जातियों की दयनीय परिस्थिति — Pgs. 252
8.2 खटिक जाति दलित जाति की श्रेणी में — Pgs. 257
8.3 दलित जातियों के पुनरुत्थान में ही राष्ट्रहित — Pgs. 263
8.4 खटिक जाति का सामाजिक उत्थान आवश्यक — Pgs. 267
8.5 खटिक जाति का आर्थिक विकास आवश्यक — Pgs. 271
8.6 खटिक जाति का शैक्षणिक एवं राजनैतिक सशक्तीकरण — Pgs. 273
8.7 खटिक जाति को संपूर्ण हिंदुस्थान में अनुसूचित जाति में
सम्मिलित करना आवश्यक — Pgs. 278
8.8 हिंदू हितरक्षण की पर्याय खटिक जाति — Pgs. 284
उपसंहार — Pgs. 292
परिशिष्ट : (हिंदू खटिक जाति एवं उपजातियों की सूची) — Pgs. 300
संदर्भ ग्रंथ सूची — Pgs. 335
डॉ. विजय सोनकर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी जनपद में हुआ।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.बी.ए., पी-एच.डी. (प्रबंध शास्त्र) के साथ ही संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री की उपाधि प्राप्त। बाल्यकाल से ही संघ की शाखाओं में राष्ट्रोत्थान एवं परमवैभव के भाव से परिचित डॉ. शास्त्री की संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा काशी में हुई।
तीन जानलेवा बीमारियों के बाद पूर्णरूपेण स्वस्थ हुए डॉ. शास्त्री ने प्रकृति के संदेश को समझा। हिंदू वैचारिकी और हिंदू संस्कृति को आत्मसात् कर राजनीति में प्रवेश किया और लोकसभा सदस्य बने। सामाजिक न्याय एवं सामाजिक समरसता के पक्षधर डॉ. सोनकर शास्त्री को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया।
देश एवं विदेश की अनेक यात्राएँ कर डॉ. शास्त्री ने हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका को सुनिश्चित किया तथा मानवाधिकार, दलित हिंदू की अग्नि-परीक्षा, हिंदू वैचारिकी एक अनुमोदन, सामाजिक समरसता दर्शन एवं अन्य अनेक पुस्तकों का लेखन किया। विश्वमानव के ‘सर्वोत्तम कल्याण की भारतीय संकल्पना’ को चरितार्थ करने का संकल्प लेकर व्यवस्था के सभी मोरचा पर सतत सक्रिय एवं वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।