₹350
विज्ञापन प्रदेश में रहनेवाली ज्यादातर लड़कियों का मैंने यही चरित्र देखा है। ये जरा भी डिमांडिंग नहीं होतीं। लड़का 150 सीसी की बाइक चलाए तो उस पर लट्टू हो जाती हैं, 125 सीसी की बाइक ले आए तो भी फ्लैट हो जाती हैं। गाड़ी के इंजन का इनके पिकअप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ये आदतन सैल्फ स्टार्ट होती हैं। प्रभावित होने के लिए कोई शर्त नहीं रखतीं। बंदरछाप लड़का कबूतरछाप दंतमंजन भी लगाता है तो उसे दिल दे बैठती हैं। ढंग का डियो लगाने पर उसके कपड़े फाड़ देती हैं। आम तौर पर लड़कियों को पान-गुटखे से भले जितनी नफरत हो, लेकिन विज्ञापनबालाएँ उसी को दिल देती हैं, जो खास कंपनी का गुटखा खाता है। मानो बरसों से ऐसे ही लड़के की तलाश में हों, जो जर्दा या गुटखा खाता हो।
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अनुक्रम | |
लेखकीय—5 | |
भूमिका—7 | 38. या तुम रिमोट के लिए नहीं झगड़ते?—94 |
1. होनी ने बनने नहीं दिया धोनी!—13 | 39. दर्शक होने का सौभाग्य!—97 |
2. क्रांतिकारी की चप्पल—15 | 40. मुहावरों में पिलती बेचारी सजियाँ—99 |
3. विज्ञापन प्रदेश की लड़कियाँ!—17 | 41. हमें हमारे हाल पर छोड़ दो—101 |
4. पनीर में या है?—19 | 42. प्यार अंधा होता है, वो बर्थ सर्टिफिकेट नहीं देखता!—103 |
5. आलसियों से बची है दुनिया की शांति—21 | 43. हजार करोड़ तक के घोटालों को मिले कानूनी मान्यता!—106 |
6. पानी नहीं, पार्किंग के लिए होगा तीसरा विश्व युद्ध!—23 | 44. प्लास्टिक बधाइयाँ!—108 |
7. सृष्टि का सबसे बड़ा सवाल!—26 | 45. एक सलाम भारतीय पुलिस के नाम!—110 |
8. मच्छर को बनाएँ राष्ट्रीय कीट—28 | 46. महँगाई पीड़ित लेखक का खत—112 |
9. इंग्लिश-विंग्लिश!—30 | 47. द ग्रेट इंडियन वैडिंग तमाशा—114 |
10. जानते नहीं मेरा बाप कौन है?—32 | 48. सरकारी लापरवाहियों का सौंदर्यशास्त्र—116 |
11. केजरीवालजी, बच्चा अँगूठा चूसता है—34 | 49. इस शहर में हम भी भेड़ें हैं—118 |
12. संदेसे आते हैं, हमें फुसलाते हैं!—36 | 50. स्नानवादियों के खिलाफ श्वेतपत्र—120 |
13. क्रिकेट और राजनीति का गठजोड़—38 | 51. राजनीतिक दलों में उठी एफडीआई की माँग —123 |
14. तबीयत नहीं, नीयत है खराब!—41 | 52. नो पुडिंग-सेट, प्लीज!—125 |
15. जान जाए, फैशन न जाए!—43 | 53. फिसिंग से हो सकती है सारी समस्याएँ फिस!—127 |
16. गैर विवादित रचना लिखने के कुछ टिप्स!—45 | 54. एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी चाहेगा!—129 |
17. हिंदी व्यंग्यकारों से सबक लें—48 | 55. भारत तोड़ो आंदोलन—131 |
18. जो दिल करे वो खाओ—50 | 56. आईपीएल को राष्ट्रीय घोटाला घोषित करो—133 |
19. जब मेरा रिजल्ट आया था—52 | 57. लैट्स प्ले निंदा-निंदा—135 |
20. समस्या की टेली पे्रजेंस—54 | 58. तू ही तो मेरा हॉर्न है—137 |
21. स्वाइन लू का विदेशी मूल!—56 | 59. फोटो छपवाने की हसरत!—140 |
22. इतनी इज्जत बरदाश्त नहीं होगी—58 | 60. न आपकी, न मेरी!—142 |
23. भ्रष्टाचारियो, जरा प्रैटिकल हो जाओ!—60 | 61. या इशांत शर्मा को आईब्रो बनवानी चाहिए?—144 |
24. जितनी तारीफ की जाए, ज्यादा है!—62 | 62. सच्चे प्यार की तलाश!—146 |
25. वो सुबह कभी नहीं आएगी—64 | 63. ये सब छापकर तुम्हें या मिलेगा?—148 |
26. लोमड़ी की संवेदनशीलता—66 | 64. रचनात्मकता का गौरव और धंधेबाज का स्वार्थ!—150 |
27. चुनावी समर का अंतिम विज्ञपन!—68 | 65. मुत मोबाइल की दूरगामी सोच—152 |
28. लेखक और बीवी!—70 | 66. बिल दिया है, जाँ भी देंगे!—154 |
29. काश! मैं भाव न खाती—72 | 67. ऐसे मनाई मैंने इको-फ्रेंड्ली दीपावली!—156 |
30. जैक फॉस्टर, तुमने मुझे मरवा दिया—77 | 68. देश के लिए अपनी प्यास घटाओ—158 |
31. लौट के फिर न आनेवाले—79 | 69. महँगाई से निपटने के कुछ उपाय—161 |
32. रोडवेज की किस बस से आ रही है बारिश?—81 | 70. अगला स्टेशन कश्मीरी गेट है—164 |
33. रिश्ते भी अगर ब्रांडेड हो जाएँ—83 | 71. रोनेवाले मुझे पेड आर्टिस्ट लगते हैं—166 |
34. मंदी में नौकरी बचाने के उपाय—85 | 72. प्लीज, मुझसे जलना मत!—168 |
35. कोई तो बताए कि पंखा चलाना है या नहीं?—88 | 73. धोनी की मानहानि और मेरी!—170 |
36. रेलवे स्टेशन का दिलकश नजारा—90 | 74. गबर का होली बोनेंजा!—172 |
37. पुरस्कार का एंटी लाइमैस—92 | 75. फेसबुक का फोटो माफिया!—175 |
आपराधिक रेकॉर्ड—कॉलेज खत्म होने तक नीरज बधवार ने जिंदगी में सिर्फ 3 ही काम किए-टी.वी. देखना, क्रिकेट खेलना और देर तक सोना। ग्रेजुएट होते ही उन्हें समझ आ गया कि क्रिकेटर मैं बन नहीं सकता, सोने में कॅरिअर बनाया नहीं जा सकता, बचा टी.वी.; जो देखा तो बहुत था मगर उसमें दिखने की तमन्ना बाकी थी। यही तमन्ना उन्हें दिल्ली घसीट लाई।
जर्नलिज्म का कोर्स करने के बाद छुट-पुट नौकरियों में शोषण करवा वो टी.वी. में एंकर हो गए। एंकर बन परदे पर दिखने का शौक पूरा किया तो लिखने का शौक चढ़ गया। हिम्मत जुटा एक रचना अखबार में भेजी। उनके सौभाग्य और पाठकों के दुर्भाग्य से उसे छाप दिया गया। इसके बाद दुस्साहस बढ़ा तो उन्होंने कई अखबारों में रायता फैलाना शुरू कर दिया।
सिर्फ अखबार और टी.वी. में लोगों को परेशान कर दिल नहीं भरा तो ये सोशल मीडिया की ओर कूच कर गए। अपने वन लाइनर्स के माध्यम से लाखों लोगों को ट्विटर और फेसबुक पर अपने झाँसे में ले चुके हैं। नीरज पर वनलाइनर विधा का जन्मदाता होने का इल्जाम भी लगता है और ऐसा इल्जाम लगाने वालों को वो अलग से पेमेंट भी करते हैं।
अपना ही परिचय थर्ड पर्सन में लिखने की धृष्टता करने वाले नीरज वर्तमान में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में क्रिएटिव एडिटर के पद पर कार्यरत हैं, जहाँ ‘Fake it India’ कार्यक्रम के जरिए लोगों को बुरा व्यंग्य परोसने का काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं। जनता का भी टेस्ट इतना खराब है कि अब तक 20 करोड़ लोग इन विडियोज को देख अपनी आँखें फुड़वा चुके हैं।
इनकी पहली किताब ‘हम सब Fake हैं' को भारत में आई ‘इंटरनेट क्रांति’ का श्रेय दिया जाता है। उसे पढ़ते ही जनता का लिखने-पढ़ने से भरोसा उठ गया और वो इंटरनेट की ओर कूच कर गई। नीरज की यह दूसरी पुस्तक जुल्म की इस लंबी दास्तान का एक और किस्सा है और इस उम्मीद में आपके हाथों में है कि इसका हिस्सा बनकर आप इस किस्से को सुनाने लायक बना पाएँगे।
बाकी, पुस्तक पर बरबाद हुए पैसों के लिए लानत-मलानत करनी हो, तो लेखक को सीधे 9958506724 पर कॉल कर सकते हैं। कॉल कर पैसे बर्बाद न करना चाहें, तो मिस कॉल दे दें, लेखक इतना खाली है कि खुद पलटकर आपको फोन कर लेगा।