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"प्रेम में डूबा हर व्यक्ति विवाह को ही जीवन का अंतिम ध्येय समझता है। अन्य लोगों के विवाह देखने के बाद भी ऐसा ही सोचता है कि हमारा विवाह दूसरों की अपेक्षा अलग ही होगा!
विवाह के बाद के सात वर्षो के दौरान अधिकतर विवाह सामान्य विवाहों जैसे ही हो जाते हैं। रोमांस और आदर्श विवाह की सारी कल्पनाएँ, सारे वचन और प्रतिज्ञाएँ धीरे-धीरे मंद पड़ती जाती हैं। विवाहित जीवन खंडित हो जाने के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते पति-पली धीरे-धीरे एक-दूसरे से विपरीत दिशा में प्रवास करने लगते हैं।
किसी भी रिश्ते को थोड़ा सँभालने की आवश्यकता होती है। विवाह जैसा नाजुक रिश्ता रख-रखाव एवं समभाव के अभाव में एकदम टूट जाता है। इसके बावजूद विवाह को सफल बनाकर दो व्यक्ति सुख व संतोष से जीवन भर साथ जी सकते हैं। टूट चुके और मृतप्राय हो चुके विवाह भी फिर से नवपल्लवित हो सकते हैं। जरूरत है थोड़ी समझदारी की, थोड़ा स्वीकार करने की, थोड़ी कोशिश और थोड़ा समझौता करने की।
यह पुस्तक धीरे-धीरे आपको एक नई दुनिया में ले जाएगी और आपको आपकी गलतियाँ समझाएगी। आप कहाँ और किस प्रकार से गलत थे, यह भी आपके मन को समझाएगी।"
काजल ओझा वैद्य गुजराती साहित्यिक जगत् का एक विशिष्ट नाम है, जिन्होंने मीडिया, थिएटर, टेलीविजन और रेडियो पर विविध भूमिकाएँ निभाई हैं।
केवल सात वर्षों में उन्होंने 56 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें उपन्यास, कहानी-संग्रह, कविता, निबंध, नाटक आदि शामिल हैं। गुजरात युनिवर्सिटी एवं अमेरिका और लंदन की युनिवर्सिटी में आप विजिटिंग फेकल्टी हैं। स्क्रीस्ट राइटिंग एवं ब्राडिंग के विषय पढ़ाती हैं। टेलिविजन के अनेक सफल सीरियल गुजराती एवं हिंदी में सफल धारावाहिक लिखे हैं। उनकी लिखी फिल्म ‘सप्तवदी’ देश-विदेश के फिल्म फेस्टिवल्स में सराही गई, उनके लिखे नाटक जैसे कि ‘परफेक्ट हसबंड’, ‘सिल्वर ज्युबिली’ के शो अमेरिका, लंदन, अफ्रीका और दुबई में हो चुके हैं।
उन्होंने अनेक लघु फिल्मों में दिग्दर्शन एवं अभिनय किया है।
‘प्रभात खबर’, ‘दिव्य भास्कर’, ‘गुजरात मित्र’, ‘फूलछाब-कच्छमित्र’, ‘मुंबई समाचार’ में उनके कॉलम अति लोकप्रिय हैं। ‘चित्रलेखा’ में उनके लिखे उपन्यास धारावाहिक रूप से चलते है