हर इनसान की मूल चाहत है स्वयं को जानना किंतु अहंकार, अज्ञान, अध्यान और अनजाने में उसके अंदर ऐसी चाहतें उभरकर आती हैं, जिनकी कोई सच्ची बुनियाद नहीं है। अनगिनत और अनावश्यक इच्छाओं के भँवर में फँसकर इनसान का जीवन किस ओर जा रहा है, यह वह देख ही नहीं पा रहा है। मान्यता और माया के शिकंजे में उसके जीवन की क्वालिटी समाप्त होती जा रही है।
इस पुस्तक द्वारा आप में ऐसी जागृति लाई जा रही है, जिससे आपका होश इतनी ऊँचाई पर जाए कि सूक्ष्म-से-सूक्ष्म इच्छा भी आपकी पकड़ में आए। इसके लिए आपको प्रेरणा पानी है एक चिडि़या से।
जिस तरह चिडि़या एक-एक तिनका चुनकर अपना आशियाना बनाती है, उसी तरह आपको भी अपनी एक-एक इच्छा के साथ खोज कर, उसके पीछे छिपी मान्य कथा को मिटाना है। ऐसे में जो शरीर रूपी आशियाना बनेगा, वह सेल्फ के लिए वाकई ध्यानकक्ष, मौनकक्ष, अभिव्यक्ति कक्ष, दर्पणकक्ष, एग्जीबीशन कक्ष होगा, जिसमें केवल आनंद-ही-आनंद होगा। शुभ इच्छा पूरी होने का आनंद!
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अनुक्रम
प्रस्तावना—इच्छाओं को करें बाय-बाय — Pgs. 9
प्रारंभ—प्रबल इच्छा-शक्ति और निरंतरता
चित्रकार की इच्छा — Pgs. 11
खंड-1 : इच्छा मुक्ति
भाग-1 इच्छा-मुक्ति में ‘काश’ का अवरोध — Pgs. 19
भाग-2 आदतें—इच्छाओं का दर्पण — Pgs. 30
भाग-3 शुभ इच्छा तेज इच्छा बने — Pgs. 34
भाग-4 दिलवाली खुशियाँ — Pgs. 37
भाग-5 अंतर्मन—एक खामोश सेवक — Pgs. 41
भाग-6 अनावश्यक आदतों को करें बाय-बाय — Pgs. 47
भाग-7 आदत तोड़ने की उपयोगी आदत — Pgs. 52
भाग-8 अंतर्मन एवं बाह्य मन में समन्वय — Pgs. 57
भाग-9 किस ख्वाहिश पर दम निकले — Pgs. 61
भाग-10 इच्छा-मुक्ति ध्यान — Pgs. 64
खंड-2 : तेजचाहत चेतना और चुनाव
भाग-11 डी.पी.एस. मनन मार्ग — Pgs. 71
भाग- 12 ख की कथा से मुक्ति — Pgs. 75
भाग- 13 अतेज चाहतों को तड़ीपार करें — Pgs. 80
भाग- 14 मैं जो हूँ, वही बनकर ज्यादा-से-ज्यादा जीऊँ — Pgs. 86
भाग- 15 संतुष्टि की कहानी — Pgs. 91
भाग- 16 तुम्हें जो लगे अच्छा, वही मेरी इच्छा — Pgs. 95
भाग- 17 चुनाव, चेतना, चाहत — Pgs. 101
भाग- 18 सब इच्छाओं से परे तेज इच्छा — Pgs. 107
भाग- 19 वास्तविक चाहत—ध्यान — Pgs. 111
खंड-3 : अंतिम निष्कर्ष
भाग-20 इच्छा-पूर्ति वृक्ष — Pgs. 123
भाग-21 सवाल-जवाब — Pgs. 126
भाग-22 भजन-इच्छा दी है — Pgs. 136
परिशिष्ट
तेजज्ञान फाउंडेशन—जानकारी — Pgs. 139
तेजगुरु सरश्री की आध्यात्मिक खोज उनके बचपन से प्रारंभ हो गई थी। अपने आध्यात्मिक अनुसंधान में लीन होकर उन्होंने अनेक ध्यान-पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें विविध वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर अग्रसर किया।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।
सरश्री ने दो हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सत्तर से अधिक पुस्तकों की रचना की है। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनूदित हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं।