₹125
विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंचालक श्रीगुरुजी अलौकिक व्यक्तित्व के धनी थे। उनका अमोघ वक्तृत्व, अपार-समर्पित राष्ट्रनिष्ठा, कुशल संघटन, विलक्षण स्मरणशक्ति आदि गुण उन्हें एक युगद्रष्टा बनाते हैं। उनका कहा हुआ आज भी प्रासंगिक है। अनुभूति से, साधना से, आत्मीय भावना से उन्हें कालातीत विचार करने की शक्ति प्राप्त हुई थी।
उनकी हिंदुत्व की परिभाषा सर्व-समावेशक की थी। हिंदुस्थान की भूमि पर रहनेवाला—किसी भी जाति का, धर्म का, पक्ष का हो—प्रथमत: हिंदू है : यह विचार उन्होंने दिया। इसके अंतर्गत राष्ट्र-विकास, राष्ट्र-सुरक्षा और सीमा-सुरक्षा उन्हें सर्वाधिक प्रिय थी।
संस्कृति के प्रति उनकी अपार निष्ठा थी। विश्व में सबसे प्राचीन भारतीय संस्कृति के शाश्वत जीवन-मूल्य ऋषि-मुनियों के अनुभूत तथा साधना से संपन्न मानवीय विचारों पर आधारित हैं, यह संस्कृति-संवर्धन उन्हें महत्त्वपूर्ण लगता था। उनका सबकुछ राष्ट्र को समर्पित था। वे राष्ट्र को सर्वोपरि मानते थे।
ऐसे राष्ट्रपुरुष श्रीगुरुजी के प्रेरणादायी जीवन की मोहक नाट्य प्रस्तुति है इदं न मम।
जन्म : 21 दिसंबर, 1942 को बंबई में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), साहित्य रत्न।सौ. शुभांगी भडभडे मराठी की अत्यंत लोकप्रिय एवं प्रख्यात साहित्यकार हैं। पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक घटना-प्रतिघटनाओं से प्रभावित होकर अपनी खास शैली में लिखनेवालों में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है।
कृतियाँ : ग्यारह चारित्रिक तथा अठारह सामाजिक उपन्यास, पाँच कथा-संग्रह, बारह एकांकी। विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य के अतिरिक्त तीन नाटक और स्तंभ लेखन; साथ ही किशोर साहित्य। दूरदर्शन व आकाशवाणी पर नाटकों का प्रसारण तथा वार्त्ता आदि।
सम्मान-पुरस्कार : महाराष्ट्र साहित्य सभा का ‘कविता पुरस्कार’, विदर्भ साहित्य संघ का ‘एकांकी लेखन पुरस्कार’, साहित्य अकादमी, बड़ौदा का ‘कथा पुरस्कार’, ‘कै. सुमन देशपांडे बाल साहित्य पुरस्कार’, ‘बाल उपन्यास पुरस्कार’, अ.भा. नाट्य परिषद्, मुंबई का ‘एकांकी लेखन पुरस्कार’ तथा ‘सारांश’ कथा-संग्रह पर महाराष्ट्र सरकार का ‘उत्कृष्ट वाड्मय पुरस्कार’।