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‘‘रविन्द्र कुमार जी की कविताओं में जीवन के विविध रंग मिले हुए हैं। ‘इक्कीसवीं सीढ़ी’, ‘चौराहा’, ‘जड़ से जूझना, लहर से नहीं’, ‘ये चीख’, ‘सियार से भेड़ तक’, ‘सीमित-जीवन’, ‘मन’, ‘बढ़ते चंगुल’ तथा ‘धरती की कोख में’ आदि कविताएँ इन्हीं विविध रंगों की बानगी हैं।
कवि के पास जीवन का व्यापक अनुभव है और सच पूछा जाए तो कविता की व्यापकता जीवन की व्यापकता के समानांतर ही चलती है; और चलनी भी चाहिए। रविन्द्र कुमारजी की कविताएँ किसी वाद या विचारधारा की गुलाम न होकर एक शुद्ध झरने की तरह हैं।’’
‘‘संग्रह की कविता ‘एक सपना’ में कवि के शब्द—‘‘एक सपना/जो मुझे बार-बार कचोटता/मेरे मन को मरोड़ता/जल की सतह के ऊपर नीचे डुबोता’’ और ‘‘कोई ध्वनि घनघनाकर धुएँ सा देता/और अंत में/एक हल्की/छोटी सी ज्वाला दे/खत्म हो जाता/ ...कितना अच्छा होता/ जो तू रहता अभी तक!’’—देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलामजी के उन शब्दों की याद दिलाती है कि सपने वे नहीं होते, जो सोते हुए देखते हैं वरन् सपने वे होते हैं, जो आपको सोने नहीं देते। इसलिए कवि हमेशा सपनों के साथ रहना चाहता है। पाठक को थोड़ी गहराई में जाकर ही ऐसी कविताओं का भावार्थ समझ में आएगा। जीवन की जटिलताओं के बीच भी उम्मीद की कुछ हरियाली सदा मौजूद रहती है और जीवन में कुछ हासिल करने का, सपनों को पाने का यही रास्ता है। व्यक्ति के लिए भी, समाज के लिए भी और देश के लिए भी।’’
—प्रेमपाल शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार,
पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, नई दिल्ली
राष्ट्रकवि दिनकर की धरती बिहार के बेगूसराय जिले में जन्मे श्री रविंद्र कुमार एक भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी, पर्वतारोही एवं लेखक-कवि हैं, जिन्होंने विश्व की सर्वोच्च चोटी माउंट एवरेस्ट को दो अलग-अलग विषम रास्तों से फतह किया है और वर्तमान में उत्तर प्रदेश में एक जिलाधिकारी के रूप में अपनी कुशल सेवा दे रहे हैं। उन्होंने हिंदी व अंग्रेजी में दो प्रेरणादायी पुस्तकें (‘एवरेस्ट : सपनों की उड़ान-सिफर से शिखर तक’ व ‘Many Everests’) एक कॉफी टेबल बुक (Mount Everest: Experience the Journey) एवं ‘ललक’ सहित पाँच कविता संग्रह (‘आंतरिक अंतरिक्ष और स्वप्न यात्रा’, ‘दूसरी जंग’, ‘इक्कीसवीं सीढ़ी’, ‘नई ऑखें’) भी लिखे हैं। कुशल लेखन के लिए इन्हें ‘अमृतलाल नागर’ पुरस्कार’ से भी नवाजा जा चुका है।