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"पुस्तक के पहले संस्करण को पढ़ कर बहुत सारे लोगों को सुखद आश्चर्य हुआ। आमतौर पर विज्ञान के विद्यार्थी और चिकित्सक भाषा और साहित्य के मामले में रूखे और नीरस माने जाते हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद (‘डॉ. साहब, आपकी कविताएँ भावना-प्रधान और उच्च स्तरीय है’, ‘बहुत रोचक हैं’, ‘बिल्कुल हटकर हैं’, ‘पढ़ कर मजा आ गया’ आदि सरीखे) प्रशंसा का भाव लिये हुए कई बधाई सूचक शब्द सुनने को मिलते रहे,
इस संस्करण में एक नए गीत ‘मोहे रँग दे’ को सम्मिलित किया गया है। इस गीत की रिकॉर्डिंग हो चुकी है और फागुन के अवसर पर लोकार्पण करने की योजना है।
पुस्तक के बारे में— भावनाओं के कई रंग होते हैं और सभी रंगों का अपना एक अलग ही मजा होता है। जब से जिंदगी को समझा है, जिंदगी को सिर्फ अपने दिल की सुनकर, भावनाओं से परिपूर्ण जीया है। यह पुस्तक इंसान के इंद्रधनुषी भावनाओं के उन रंगों को सहेजने का एक प्रयास है, जिसका अनुभव जिंदगी के किसी-न-किसी मोड़ पर मुझे हुआ है।
‘इंद्रधनुष के कितने रंग’ जिंदगी के विविध रंगों को पन्नों पर उतरने की एक कोशिश है। ‘फलसफा’ में जिंदगी के मूल्य को समझते हुए, अपने कृत्य के द्वारा जिंदगी को और भी ज्याद मूल्यवान बनाने का संदेश दिया गया है। ‘जिंदगी दो पल की’ होती है। अफसोस, ज्यादातर लोग इस बात को जब तक समझ पाते हैं, तब तक ये पल बीत गए होते हैं।
शपथ-पत्र—रचनाकार इस पुस्तक के विक्रय से होनेवाले समस्त धन-लाभ को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के गरीब मरीजों के इलाज के लिए दान देने की शपथ लेता है।"