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हत्या, बलात्कार, नरसंहार, सिर कलम करना, लोगों को जिंदा जलाना, जिंदा गाड़ना, लोगों को पिंजरे में बंद करके आग लगा देना, गुलाम बनाना, उनकी बोली लगवाना, सेक्स स्लेव बनाना, बिना किसी मुकदमे के क्रूर सजाएँ देना, गैर-सुन्नियों पर तरह-तरह के जुल्म और यातनाएँ देने के जितने भी तरीके हैं, उनका मिला-जुला नाम है—इसलामिक स्टेट। इराक और सीरिया, दोनों देशों के ब्रिटेन जितने भू-भाग पर कब्जा करके बने इस दो साल पुराने देश का यही नाम है। इन दो सालों में उसने सारी दुनिया की रात की नींद और दिन का चैन हराम किया हुआ है। हर नया दिन आई.एस. की यातनाओं की कोई नई कहानी लेकर आता है और लोगों में नर्क की यातनाओं की जो पौराणिक कल्पना है, उसकी याद ताजा कर देता है।
आई.एस.आई.एस. की हिंसक कारगुजारियाँ केवल अपने इलाके तक ही सीमित नहीं हैं, वरन् दुनिया के कई देशों में वह आतंकी घटनाओं का नंगा नाच दिखा चुका है। रूस और अमेरिका जैसी महाशक्तियों समेत लगभग अस्सी देश, उसके खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं। आसमान से लगातार उस पर मिसाइलें और बम बरसाए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी वह अपने दानवी रूप को दिखा रहा है।
इस पुस्तक में दिया गया आई.एस.आई.एस. की कुत्सित मनोवृत्ति और काले कारनामों का लेखा-जोखा पाठक के अंतर्मन को उद्वेलित कर देगा।
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अनुक्रम
लेखकीय—5
1. इसलामी आतंकवाद : मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की—13
2. जेरे-खंजर भी ये पैगाम सुनाया हमने—26
3. वहाबी आतंकवाद—इसलामी आतंक का प्रतिनिधि चेहरा—36
4. खिलाफत के सरोकार और तीखे विरोधाभास—45
5. दो अभागे देशों की एक कहानी—51
6. अल कायदा से आई.एस.आई.एस. 62
7. मोसुल की जीत—73
8. नया खलीफा—79
9. अल्पसंयकों का नरसंहार—90
10. किसी के लिए नर्क, किसी के लिए कैद—99
11. दुनिया भर में फैले आई.एस.आई.एस. के हाथ—109
12. डिजिटल खिलाफत—118
13. बरगलानेवाला भरती-तंत्र—124
14. हारते आई.एस.आई.एस. को लोन वुल्फ का सहारा—131
15. आई.एस. का खात्मा दूर नहीं—137
16. खलीफा और भारत—142
17. इसलामिक स्टेट का दर्शन—152
18. आई.एस.आई.एस. और इसलाम में सिविल वार—162
सतीश पेडणेकर
जन्म : ग्वालियर (म.प्र.)।
शिक्षा : हिंदी (एम.ए.)।
कृतित्व : पिछले चालीस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। इस दौरान ग्वालियर, दिल्ली और मुंबई में जिलास्तरीय पत्रकारिता से लेकर राष्ट्रीय पत्रकारिता तक की खाक छानी। ग्वालियर के एक छोटे से साप्ताहिक ‘श्रमसाधना’ से पत्रकारिता में कदम रखा। ‘दैनिक भास्कर’ में प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में कॅरियर की शुरुआत की। फिर 1977 से दिल्ली में ‘जाह्नवी’ मासिक और ‘पाञ्चजन्य’ में उपसंपादक रहे। 1983 से ‘जनसत्ता’ दिल्ली में, 1988 से मुंबई तबादला; जनसत्ता व संझा जनसत्ता में समाचार संपादक के रूप में काम किया। 2003 में फिर दिल्ली वापसी। जनसत्ता में विशेष संवाददाता के रूप में सक्रिय रहे। 2011 में थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी’ की वेबसाइट आजादी.मी के संपादक और न्यूज एक्सप्रेस चैनल में संपादक; नेशनल ब्यूरो के रूप में वेब और टी.वी. पत्रकारिता का भी अनुभव लिया। अभी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन। कभी-कभी टी.वी. की बहसों में भी शामिल। पिछले कुछ वर्षों में ‘आतंकवाद और इसलाम’ विषय पर थोड़ा-बहुत पढ़ा, यह पुस्तक उसका ही नतीजा है। आनेवाले समय में इसलाम, इसलामी आतंकवाद और मुसलिम मानसिकता विषय पर कई और पुस्तकें लिखने का इरादा है।