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सात साल की
अबोध बच्ची
कहती है मुझसे—
दादी माँ,
आप कभी
बूढ़े मत होना।
सुना है
बूढ़े लोग मर जाते हैं
और मैं
किसी भी अपने को
खोना नहीं चाहती।
____
तुम्हारे बेइंतहा प्यार ने
दी जुबान मेरे खयाल को
तुम्हारी चाहतों के फूल
महकाते हैं
डाल-डाल को।
ये खयाल है छलावा
ये महक है
महज सपना
यह जानती हूँ मैं
फिर भी तुम्हारे
अहसास का
अहसान बहुत
मानती हूँ मैं।
अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के मुल्तान जिले के ग्राम सुजाबाद में 12 दिसंबर, 1941 को जन्मी अनुराधा शर्मा ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। देश के विभाजन के पश्चात् उनका परिवार भारत के पंजाब प्रांत के जिला भटिंडा के मराज गाँव में आ गया। अपने गाँव में, नानी के यहाँ अमृतसर में और दिल्ली में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई।
विवाह के पश्चात् उनका निवास स्थान हो गया, राजस्थान में श्री गंगानगर जिले का कस्बा श्रीकरणपुर। यहीं पर खेतीबाड़ी और शिक्षा के क्षेत्र में बाल-गोपालों को सँवारने का काम उन्होंने दिल से किया। इसके बाद डिजाइनदार खादी वस्त्र, दरियाँ बनाने और राजधानी जयपुर में ज्वैलरी डिजाइन के क्षेत्र में भी अपनी कार्यकुशलता की धाक जमाई।
बी.ए., बी.एड. श्रीमती अनुराधा शर्मा संवेदनशील व कर्मशील व्यक्तित्व की धनी है। अपने कार्य के अतिरिक्त वर्षों से गद्य व पद्य लेखन में उनकी रुचि रही है। जीवन के खट्टे-मीठे, विरह और मिलन तथा मानव मन की गहराइयों ने लेखिका के अंतर्मन को स्पंदित किया है। यही भावनाएँ कविता के रूप में प्रस्फुटित हुई हैं, जो पाठक की चेतना को आल्हादित करती हैं।