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सुषम बेदी की यह औपन्यासिक कृति बेहद रोमांचक ही नहीं, विचारोत्तेजक भी है। अमरीका में बसे भारतीयों के जीवन पर केंद्रित इस उपन्यास में सुषम बेदी ने उन तथाकथित संत-महात्माओं और बाबाओं का भंडाफोड़ किया है, जो अपनी कुटिलताओं से मानवीय दुर्बलताओं का भरपूर लाभ उठाते हैं।
स्वामी रामानंद प्रतीक है ऐसे ही बाबाओं का, जो अपनी भौतिक समस्याओं का तंत्र-मंत्र, चमत्कार के जरिए तात्कालिक समाधान खोजने की मानवीय दुर्बलताओं का पूरा-पूरा फायदा उठाता है।
अभिषेक, अल्पना, करन, निकोल प्रतिनिधित्व करते हैं ऐसे लोगों का, जो प्रबुद्ध होने के बावजूद ऐसे ही बाबाओं के दुष्चक्र में फँसकर अच्छा-खासा जीवन विषादमय बना डालते हैं।
‘इतर’ मात्र उपन्यास ही नहीं, एक चेतावनी भी है उन लोगों के लिए, जो जिंदगी में उन्नति या रोग-निवृत्ति के लिए चमत्कार का ‘शॉर्टकट’ खोजते हैं।
जन्म : फिरोजपुर (पंजाब) में।
शिक्षा : दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से बी.ए., एम.ए., एम.फिल तथा पंजाब विश्वविद्यालय से पी-एच.डी.।
समसामयिक हिंदी रंगमंच और हिंदी भाषा शिक्षण एवं अध्यापन पर शोध कार्य।
अमरीकी कौंसिल ऑन द टीचिंग ऑफ फॉरन लैंग्वेजेज के लिए टेस्टर व ट्रेनर; साथ ही उनकी तथा स्टारटॉक की ओर से हिंदी प्राध्यापकों के प्रशिक्षण के कार्य में जुटी है। हिंदी भाषा पाठन के क्षेत्र में प्रामाणिक पाठ्य सामग्री तैयार करने तथा हिंदी भाषा के मानकीकरण पर विशेष काम। भाषा संबंधी लेख सम्मानित पत्रिकाओं में प्रकाशित।
प्रकाशित पुस्तकें : 8 उपन्यास, 4 कहानी-संग्रह, एक-एक कविता तथा निबंध-संग्रह; ‘आत्मकथात्मक कृति’; ‘हिंदी नाट्य : प्रयोग के संदर्भ में’ (शोधग्रंथ) प्रकाशित। कहानियों और उपन्यासों के अनुवाद फ्रेंच, डच, अंग्रेजी, उर्दू, उडि़या, गुजराती, पंजाबी, तेलुगु आदि में।
भारतीय साहित्य अकादेमी तथा अक्षरम् द्वारा हिंदी में साहित्यिक योगदान के लिए सम्मान तथा उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी, छात्र संस्था की ओर से 1994 में पुरस्कृत। कहानी ‘गुरुमाई’ 2010 में अभिव्यक्ति इंटरनेट द्वारा पुरस्कृत। भारत के राष्ट्रपति द्वारा 2012 का ‘पद्मभूषण सत्नारायण मोटूरि पुरस्कार’ प्रादत्त।
संप्रति : 1985 से कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्यापन।