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इतिहास का प्रत्यक्ष उत्थान-पतन राष्ट्र की गति है। कभी यह पिछड़ जाता है, कभी उपयुक्त नेता का नेतृत्व पाकर प्रगति करता है। लेखक ने अपने मोटे-मोटे उपन्यासों में इतिहास के भाग्यविधाता की अमोघ लीला का ही वर्णन किया है। उन्होंने यही दिखाया है कि नाव जब तक पानी के ऊपर है, विपदा नहीं है। नाव के ऊपर पानी आने पर ही विपदा शुरू होती है। देश-सेवा के लिए रुपए-पैसे की जरूरत होती है, पर रुपए-पैसे के लिए देश-सेवा करना विपदा को, मुश्किलों को जन्म देती है।
प्रस्तुत उपन्यास द्वय में से पहले उपन्यास ‘इतिहास के कुछ अनजाने पन्ने’ का आधार एक छोटा निम्न वर्गीय परिवार है। इस परिवार की एक युवती को लेकर जब तारक और अलकेश में खींचा-तानी शुरू हुई, तभी उनका देश-प्रेम, अलौकिक त्याग, सबकुछ झूठा हो गया। वे अपने आदर्श से चूक गए। अपने एक ही ध्येय के प्रति निष्ठा और समर्पण के बिना कोई व्यक्ति या देश अपने आदर्श तक नहीं पहुँच सकता। यही है इस उपन्यास की मुख्य कथावस्तु।
दूसरे उपन्यास ‘प्रेम और राजनीति’ में यह बताने का प्रयास किया है कि अंग्रेजों ने भारत को उपनिवेश बनाकर किस प्रकार लूटा और लूट के इस माल से कैसे खुद धन्नासेठ बन गए।
जन्म : 18 मार्च, 1921 को कलकत्ता में।
शिक्षा : कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए.।
रेलवे में विभिन्न पदों पर रहते हुए भारत के अनेक भागों का भ्रमण और जनजीवन का निकट से अध्ययन। 1956 में नौकरी से अलग होकर स्वतंत्र साहित्य सर्जन का आरंभ।
बँगला और हिंदी के भी सर्वाधिक प्रिय उपन्यासकार। इनके उपन्यासों की सबसे बड़ी विशेषता है विश्वव्यापी घटनाप्रवाह के सार्वजनीन तात्पर्य को अपने में समेट लेना।
प्रकाशन : ‘अन्यरूप’, ‘साहब बीबी गुलाम’, ‘राजाबदल’, ‘परस्त्री’, ‘इकाई दहाई सैकड़ा’, ‘खरीदी कौडि़यों के मोल’, ‘मुजरिम हाजिर’, ‘पति परमगुरु’, ‘बेगम मेरी विश्वास’, ‘चलो कलकत्ता’ आदि कुल लगभग 70 उपन्यासों की रचना। ‘पुतुल दादी’, ‘रानी साहिबा’ (कहानी-संग्रह)। ‘कन्यापक्ष’ (रेखा-चित्र)।
निधन : 2 दिसंबर, 1991।