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"कुछ समय बाद कार्य और दृश्य अनुभव बन जाते हैं, जो आगे चलकर यादें और कथा का रूप भी ले पाते हैं। जबलपुर में पाँच वर्ष पदस्थ रहते हुए कुछ घटनाएँ और कुछ अनुभव कभी संघर्ष की गाथा के रूप में तो कभी परियोजना के रूप में, कभी मानवीय संवेदना के रूप में तो कभी लौकिक घात-प्रतिघात के रूप में याद आते हैं। ऐसी ही कुछ घटनाएँ, अनुभव व संवेदना इस पुस्तक के माध्यम से साझा करने का प्रयास किया गया है। यह प्रयास इसलिए है कि इनमें से अधिकांश सामान्य जनजीवन और लोक से जुड़े हैं। इन घटनाओं को तथ्यात्मकता की बोझिलपन से बचाने का प्रयास किया गया है और उसे कथा का स्वरूप देने की कोशिश की गई है।
पुस्तक सार्वजनिक वस्तु होती है, इस कारण इस पुस्तक का अधिकांश सार्वजनिक हित और उद्देश्य जुड़ा है। इनकी कुछ उपयोगिता और उपादेयता हो भी सकती है तो इस बात का दावा करना उचित नहीं होगा। समग्रतः यह पुस्तक कुछ कथाओं को पिरोने का प्रयास है, उन्हें तथ्यपरक अभिलेख के रूप में लिये जाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कथा-कहानियों के पात्रों की दुनिया में कल्पनाएँ, उनके सपने और उनके संघर्ष कल्पनीय यथार्थ के आसपास के होते हैं।"