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"हरिबाबू ने नजर घुमाकर देखा, तो उन्हें अपने ड्राइंग-रूम की हर चीज बड़ी सस्ती और घटिया नजर आई। ‘यह भी कोई ड्राइंग-रूम है!’ सोचकर वह उदास से हो गए।
ड्राइंग-रूम तो धीर साहब का है, एकदम फर्स्ट क्लास। कल जन्मदिन की बधाई देने गए, तो देखते ही रह गए। क्या सोफे, रंगीन टी.वी., वी.सी.आर. और फ्रिज थे! और क्या डेकोरेशन थी, वाह!
और हाँ, शो-केस में कितने शो-पीस सजे थे, एक से बढ़कर एक, पीतल, लकड़ी तथा संगमरमर के ! एक रैक तो पूरा-का-पूरा खिलौनों से भरा था और हर खिलौना कितना कीमती, खूबसूरत और चमचमाता हुआ लगता था"