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Jag Janani Janaki   

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Author Rajendra Arun
Features
  • ISBN : 9788173150180
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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  • Kindle Store

More Information

  • Rajendra Arun
  • 9788173150180
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2009
  • 292
  • Hard Cover

Description

जग जननि जानकी मानस के दोहों-चौपाइयों का अर्थ बताते समय धर्म-दर्शन के गूढ़ तत्त्वों और जीवन के सहज किन्तु विस्मृत सत्यों को अपनी मृदु-मधुर शैली में हमारे हृदय की गहराइयों तक उतारते जाना अरुणजी की प्रमुख विशेषता है। सीता के पावन चरित्र को तुलसी ने बड़ी श्रद्धा और आस्था से सँवारा है। सीता के जीवन में दो कटु प्रसंग आते हैं—अग्नि-परीक्षा और निर्वासन। दोनों प्रसंगों को तुलसी ने अपनी कालजयी काव्य-प्रतिभा के बल पर निष्प्रभावी कर दिया है। उन्होंने लंकावासिनी सीता को छाया सीता बना दिया। लंका-विजय के बाद राम उन्हें पुन: पाने के लिए ‘कछुक दुर्वाद’ कहते हैं। छाया सीता अग्नि में प्रवेश करती हैं और उसमें से वास्तविक सीता निकलती हैं जो न लंका में गयी थीं, न कलंकित ही हुई थीं। सीता के निर्वासन के प्रसंग को तुलसी ने छुआ तक नहीं है। रामराज्य के वर्णन में उन्होंने लिखा— एक नारी ब्रत रत सब झारी। ते मन बच क्रम पति हितकारी।। ऐसे रामराज्य में धोबी का कलुषित प्रकरण कैसे स्थान पा सकता था! प्रस्तुत पुस्तक में सीता के त्यागमय और प्रेरणादायी चरित्र का लुभावना अंकन किया गया है।

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अनुक्रम

आभार : जनकसुता जग जननि जानकी — Pgs. 9

दूसरे संस्करण की भूमिका : सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं — Pgs. 19

1. देखि सीय सोभा सुखु पावा — Pgs. 25

2. देखि रूप लोचन ललचाने  — Pgs. 69

3. सिय सोभा नहिं जाइ बखानी — Pgs. 99

4. अति परिताप सीय मन माहीं — Pgs. 114

5. प्रेम पिआसे नैन — Pgs. 13०

6. पिय बियोग सम दुखु जग नाहीं — Pgs. 142

7. पिय हिय की सिय जाननिहारी — Pgs. 184

8. तापस बेष जानकी देखी — Pgs. 2०5

9. सुनि जानकी परम सुखु पावा — Pgs. 216

1०. प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी — Pgs. 223

11. सीता कै अति बिपति बिसाला — Pgs. 244

12. राम बिरहँ जानकी दुखारी — Pgs. 264

13. पति अनुकूल सदा रह सीता — Pgs. 279

The Author

Rajendra Arun

मॉरीशस में पं. राजेन्द्र अरुण ‘रामायण गुरु’ के नाम से जाने जाते हैं। उनके अथक प्रयत्न से सन् 2001 में मॉरीशस की संसद् ने सर्वसम्मति से एक अधिनियम (ऐक्ट) पारित करके रामायण सेण्टर की स्थापना की। यह सेण्टर विश्‍व की प्रथम संस्था है, जिसे रामायण के आदर्शों के प्रचार के लिए किसी देश की संसद् ने स्थापित किया है। पं. राजेन्द्र अरुण इसके अध्यक्ष हैं। 29 जुलाई, 1945 को भारत के फैजाबाद जिले के गाँव नरवापितम्बरपुर में जनमे पं. राजेन्द्र्र अरुण ने प्रयाग विश्‍‍वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्‍त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना। सन् 1973 में वह मॉरीशस गये और मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम के हिन्दी पत्र ‘जनता’ के सम्पादक बने। उन्होंने वहाँ रहते हुए ‘समाचार’ यू.एन.आई. और ‘हिन्दुस्तान समाचार’ जैसी न्यूज एजेंसियों के संवाददाता के रूप में भी काम किया। सन् 1983 से पं. अरुण रामायण के कार्य में जुट गये। उन्होंने नूतन-ललित शैली में रामायण के व्यावहारिक आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया है। रेडियो, टेलीविजन, प्रवचन और लेखन से वे अपने शुभ संकल्प को साकार कर रहे हैं।

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