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Jagadguru Shri Shankaracharya   

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Author Deendayal Upadhyay
Features
  • ISBN : 9789386231987
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Deendayal Upadhyay
  • 9789386231987
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2022
  • 112
  • Hard Cover
  • 140 Grams

Description

हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
—दीनदयाल उपाध्याय

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अनुक्रम

भूमिका—5

मनोगत—7

1. अवतरण—11

2. बाल्यकाल—14

3. आकांक्षा—21

4. ध्येय-पथ—26

5. गुरु के सान्निध्य में—31

6. शिक्षा : माया और संसार—37

7. बंधन से मुति—43

8. जनजीवन का साक्षात्कार—48

9. दिग्विजय यात्रा—57

10. प्रयाग में—64

11. कुमारिल भट्ट—69

12. मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ—73

13. भारती का समाधान—84

14. विविधता में एकता—88

15. राष्ट्र, धर्म और संप्रदाय—95

16. हिमालय की चोटियों पर—101

17. ध्येय सिद्धि—104

18. महाव में विलीन—108

The Author

Deendayal Upadhyay

जन्म : 25 सितंबर, 1916 को मथुरा जिले के छोटे से गाँव नगला चंद्रभान में। 
पं. दीनदयाल एक प्रखर राष्ट्रवादी, चिंतक, विचारक व लेखक थे। उनका मानना था कि समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति का विकास और उन्नयन करने से ही समाज का उत्थान होगा। यही भाव उनके द्वारा प्रणीत ‘एकात्म मानववाद’ के सिद्धांत में निरूपित है। 
उन्होंने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। बी.एस-सी., बी.टी. करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हो गए। अतः कॉलेज छोड़ने के तुरंत बाद वे संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बनकर राष्ट्रकार्य में प्रवृत्त हो गए। 
सन् 1951 में भारतीय जनसंघ का निर्माण होने पर वे उसके मंत्री बनाए गए। दो वर्ष बाद सन् 1953 में भारतीय जनसंघ के महामंत्री निर्वाचित हुए और लगभग 15 वर्ष तक इस पद पर रहकर उन्होंने अपने दल की अमूल्य सेवा की। कालीकट अधिवेशन (दिसंबर 1967) में वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 11 फरवरी, 1968 की रात में रेलयात्रा के दौरान मुगलसराय स्टेशन के आसपास अज्ञात व्यक्तियों ने उनकी हत्या कर दी।
उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं— 
• दो योजनाएँ ज़् राजनीतिक डायरी ज़् भारतीय अर्थनीति ज़् सम्राट् चंद्रगुप्त 
• जगद्गुरु शंकराचार्य ज़् एकात्म मानववाद।  

 

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