₹250
यह सुनकर कि अंग्रेजी सेनाएँ मीकतिला और पोपा की ओर बढ़ रही हैं, नेताजी भयभीत नहीं हुए । खतरे के क्षेत्र मीकतिला में तो वे थे ही, उन्होंने पोपा पहुँचकर अपनी लड़ती हुई सेना का साथ देने का निर्णय कर डाला । जिस स्थान पर अपने कुछ साथियों के साथ बैठकर वे विचार-विमर्श कर रहे थे, वहाँ उन्हें बार- बार बिजली की चमक जैसी दिखाई दे जाती थी । यह चमक अंग्रेजी तोपों के चलने से उत्पन्न हो रही थी । शत्रु उस स्थान पर किसी समय भी पहुँच सकता था ।
नेताजी पोपा पहुँचने की अपनी जिद पर अड़े हुए थे । नेताजी की जिद देखकर मेजर जनरल शहनवाज खाँ ने एक चुभती हुई बात उनसे कही- '' नेताजी, अब स्वयं अपने जीवन पर आपका अधिकार नहीं है । वह राष्ट्र की अमूल्य निधि बन चुका है । जरा सोचिए तो कि यदि आपको कुछ हो गया तो आजाद हिंद फौज और आजाद हिंद अभियान का क्या होगा?''
बात अपनी जगह ठीक थी, पर नेताजी पर उसका कोई असर नहीं हुआ । वे मुसकराकर बोले-
'' शहनवाज, मुझसे बहस करने से कोई फायदा नहीं है; मैंने पोपा पहुँचने का निश्चय कर लिया है और मैं वहाँ जा रहा हूँ । तुम्हें मेरी सुरक्षा के लिए चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि इंग्लैड अभी वह बम नहीं बना पाया जो सुभाषचंद्र बोस के प्राण ले सके । ''
-इसी पुस्तक से
जन्म : १ जनवरी, ११११ को अशोक नगर, गुना ( मप्र.) में ।
श्रीकृष्ण सरल उस समर्पित और संघर्षशील साहित्यकार का नाम है, जिसने लेखन में कई विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं । सर्वाधिक क्रांति-लेखन और सर्वाधिक महाकाव्य ( बारह) लिखने का श्रेय सरलजी को ही जाता है ।
श्री सरल ने एक सौ सत्रह ग्रंथों का प्रणयन किया । नेताजी सुभाष पर तथ्यों के संकलन के लिए वे स्वयं खर्च वहन कर उन बारह देशों का भ्रमण करने गए जहाँ -जहाँ नेताजी और उनकी फौज ने आजादी की लड़ाइयों लड़ी थीं ।
श्रीकृष्ण सरल स्वयं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे तथा प्राध्यापक के पद से निवृत्त होकर आजीवन साहित्य-साधना में रत रहे । उन्हें विभिन्न संस्थाओं द्वारा ' भारत- गौरव ', ' राष्ट्र-कवि ' ,, ' क्रांति-कवि ', ' क्रांति-रत्न ', ' अभिनव- भूषण ', ' मानव- रत्न ', ' श्रेष्ठ कला- आचार्य ' आदि अलंकरणों से विभूषित किया गया ।
निधन : 1 सितंबर, 2000 को ।