जैव-प्रौद्योगिकी एक नई और बहुआयामी तकनीक है। इसकी सहायता से समूची जीवित कोशिका अथवा उसके भाग का प्रयोगशाला में प्रयोग करके एक नया परिवर्धित अंश खोजा जाता है और मानव की सेवा में उसका पूरा उपयोग किया जाता है। आजकल पूरे विश्व में आधुनिक विकास का प्रतीक बनकर आई जैव-प्रौद्योगिकी या बायो-टेक्नोलॉजी की लहर-सी चल रही है।
इस पुस्तक में जैव-प्रौद्योगिकी से संबंधित समस्त पहलुओं, जैसे—जैव-प्रौद्योगिकी का ऐतिहासिक परिदृश्य, परिभाषा, कार्यक्षेत्र, कोशिका एवं डी.एन.ए., कृषि, पशुपालन, पर्यावरण स्वच्छता एवं प्रदूषण-निवारण, जैव ज्ञानिक, खनन उद्योग, धातु-संक्षारण, पेट्रोलियम उद्योग, चर्म उद्योग, जैविक युद्ध एवं जैव आतंकवाद, परखनली वन, जीन बैंक, जैव-उर्वरक एवं जैव-कीटनाशी, टीका विकास एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विविध उपयोग, क्लोनिंग, मानव जीनोम, जीनोम अनुसंधान से विविध क्षेत्रों में लाभ, संरचना जीनोमिक्स, प्रोटियोमिक्स, जैव-प्रौद्योगिकी का भविष्य एवं चुनौतियाँ तथा जैव-सूचना विज्ञान से संबंधित जानकारी अत्यंत ही सरल एवं सुबोध भाषा में चित्रों सहित उपलब्ध है।
विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर पाठकगण जैव-प्रौद्योगिकी के समस्त पहलुओं की अधिकाधिक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
जोधपुर में जनमे विज्ञान की उच्चतम शिक्षा प्राप्त, देश-विदेश की दस लब्ध-प्रतिष्ठ विज्ञान-संस्थाओं के चयनित फेलो, रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री, लंदन से चार्टर्ड केमिस्ट की सम्मानोपाधि प्राप्त देश के वरिष्ठ विज्ञान संचारक। विगत 38 वर्षों से हिंदी में विज्ञान-लेखन और विज्ञान लोकप्रियकरण में रत डॉ. दुर्गादत्त ओझा की पुरातन एवं अद्यतन विज्ञान विषयों पर हिंदी में 50 से अधिक कृतियाँ, सहस्राधिक विज्ञान आलेख एवं शताधिक शोध-पत्र प्रकाशित हैं।
भूजल विभाग जोधपुर के अवकाश प्राप्त वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. ओझा को अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों एवं सम्मानोपाधियों से अलंकृत किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं—राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान पुरस्कार, राष्ट्रीय विज्ञान-संचार पुरस्कार, राष्ट्रीय ग्रामीण साहित्य पुरस्कार, महामहिम राष्ट्रपति से डॉ. आत्माराम पुरस्कार, मेदिनी पुरस्कार आदि। डॉ. ओझा देश-विदेश की अनेक विज्ञान-संस्थाओं से जुड़े हुए हैं तथा विज्ञान विषयक कई पत्रिकाओं एवं शोध-जर्नलों के संपादक मंडल के सदस्य हैं।