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जन-लोकपाल बिल देश में भ्रष्टाचार-निरोधी विधेयक का मसौदा है। इस विधेयक को भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों पर लगाम कसने के लिए तैयार किया गया है। इसमें ऐसा प्रावधान है कि बिना सरकार की अनुमति के नेताओं और सरकारी अफसरों पर अभियोग चलाया जा सके। अगर यह विधेयक पास हो जाता है तो लोकपाल तीसरी ऐसी संस्था होगी, जो सरकार के बिना किसी हस्तक्षेप के काम करेगी, जिस तरह चुनाव आयोग और न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से अपना काम करती हैं।
सरकारी लोकपाल विधेयक के अनुसार दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन जन-लोकपाल विधेयक में उक्त अपराध के लिए कम-से-कम पाँच साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है। साथ ही घोटाले की राशि की भरपाई का भी प्रावधान है।
पुस्तक में बहुचर्चित जन-लोकपाल बिल के सभी पक्षों को विस्तार से सरल-सुबोध भाषा में बताया गया है। इसके अध्ययन से आम आदमी भी प्रभावशाली व शक्तिशाली जन-लोकपाल बिल पास कराने में अपनी सक्रिय भूमिका निभा पाएगा।
हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक महेश शर्मा का लेखन कार्य सन् 1983 में आरंभ हुआ, जब वे हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से 1989 में हिंदी में स्नातकोत्तर। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य। लिखी व संपादित दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाश्य। भारत की अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक विविध रचनाएँ प्रकाश्य। हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त, प्रमुख हैंमध्य प्रदेश विधानसभा का गांधी दर्शन पुरस्कार (द्वितीय), पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलाँग (मेघालय) द्वारा डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, समग्र लेखन एवं साहित्यधर्मिता हेतु डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में ‘बुंदेलखंड युवा पुरस्कार’, समाचार व फीचर सेवा, अंतर्धारा, दिल्ली द्वारा लेखक रत्न पुरस्कार इत्यादि।
संप्रति : स्वतंत्र लेखक-पत्रकार।