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"संस्कृति स्वाभिमान, परंपरा और स्वायत्तता की रक्षा के लिए जितना बलिदान, जितना संघर्ष भारत में जनजातियों का रहा है, वैसा उदाहरण विश्व में कहीं और नहीं मिलता। भारत में प्रत्येक विदेशी आक्रमण के विरुद्ध जनजातियों ने सबसे पहले संघर्ष किया और शस्त्र उठाए हैं। यह संघर्ष दोनों प्रकार का हुआ--राज्य सत्ताओं की कमान में सैन्य शक्ति के रूप में स्वतंत्र संघर्ष और बलिदान के रूप में। यदि विदेशी आक्रांताओं के छल-बल से देशी सत्ताएँ पराभूत हुईं तो जनजातियों ने इन राजपरिवारों के सदस्यों को वन में छिपाकर अपने प्राणों की आहुतियाँ दीं ।
स्वाधीनता आंदोलन के दूसरे चरण में जब स्वाधीनता संघर्ष के लिए अहिंसक अभियान आरंभ हुआ, असहयोग आंदोलन चला, तब भी जनजातियों ने अपने-अपने क्षेत्र में अंग्रेजों के प्रति असहयोग आरंभ किया। नमक सत्याग्रह और जंगल सत्याग्रह में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका जनजातीय समाज की ही रही है। यह हमारी ऐतिहासिक भूल रही है कि वनवासियों-जनजातियों की पीढ़ियों के बलिदान के बावजूद इतिहास के पन्नों में उनका उल्लेख पर्याप्त नहीं है।
अनगिनत वनवासी योद्धा आज भी अनजाने-अपरिचित हैं, उनका कहीं कोई उल्लेख नहीं है। देश भर के वनवासी वीरों के महाबलिदान की गाथाओं को तलाशते हुए एक विचार बना कि स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में 75 वनवासी वीरों के शौर्य, पराक्रम और बलिदान पर केंद्रित एक संग्रह तैयार किया जाए। इसी दिशा में यह एक लघु प्रयास है। यद्यपि जनजातियों के बलिदान की गाथा अनंत है, पर इस संग्रह में प्रतीक के रूप में मात्र 75 ही लिये गए हैं।"
रंजना चितले
जन्म : ग्राम पीलूखेड़ी, जिला राजगढ़, (म.प्र.)।
शिक्षा : स्नातकोत्तर-बायोसाइंस (विशेषज्ञता जैव रसायन), पत्रकारिता, यौगिक साइंस। देशभर के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में विश्लेषणात्मक लेख, आलेख, कथा, कविता, कहानी का नियमित लेखन।
शोध : स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की वैचारिक और सक्रिय भागीदारी, गुना व अशोक नगर जिले का स्वाधीनता संग्राम, महिला नेतृत्व।
कृतियाँ : कहानी-संग्रह—आहटों के दर्द, रिश्तों के अर्थ, आजाद कथा, नाटक— जनयोद्धा, सिपाही बहादुर, झलकारी।
प्रकाशनाधीन : उपन्यास ‘साथ’, कहानी-संग्रह ‘आधा सच’।
मंचित नाटक : महानाट्य : राष्ट्रपुरुष अटल, जनयोद्धा-टंट्या भील, रानी दुर्गावती, अपनी बात, हिंद के आजाद, अजीजन, भीमा नायक, नर्मदा : नृत्य नाटिका, 1857 का मुक्ति संग्राम, झलकारी, सिपाही बहादुर, अपना जतन, चलो पढ़ाएँ, अपनी जीत, कराधान।
सम्मान : मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार, मीर अली पुरस्कार।
संप्रति : संपादक, मध्य प्रदेश पंचायिका—पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, मध्य प्रदेश की मासिक पत्रिका।