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जिस वर्ष हजारों भारतीयों का सपना पूर्ण होने जा रहा था, भारत के हृदय रामलला अपनी जन्मभूमि पर विराजने वाले थे, उस वर्ष राम को समझने की एक अनूठी ललक हृदय में उठी। राम को समझने के लिए जानकी को जाने बिना कोई और मार्ग नहीं है, यह सोचकर जानकीजी से आशीर्वाद लेकर राम जानकी वनगमन पथ की पैदल यात्रा पर निकलना हुआ। उस पदयात्रा में चलते हुए लगा कि यह कठिन तपस्या साधारण स्त्री नहीं कर सकती, इसे जानकीजी ने अपना अंश देकर पूर्ण कराया। उस पवित्र जानकी के मार्ग की यात्रा से जुड़े संस्मरण इस 'जानकी वन गमन' पुस्तक में सँजोने का प्रयास किया है। सरयू से सागर तक की इस पदयात्रा को आप तक पहुँचाने का एक छोटा सा प्रयास इस पुस्तक में है।